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मेरे इस संशोधन-कार्य में मुझे चार वर्ष लगे। इस बीच कितने ही संदर्भ-ग्रन्थों की तथा अन्य सामग्रियों की आवश्यकता पड़ती रही। भक्त श्रावकों ने उसे पूरी की, अन्यथा मेरे-सरीखा अनागार साधु क्या कर पाता। सभी को मेरा धर्मलाभ !
इन चार वर्षों में काम तो चलता रहा, पर बम्बई की जलवायु अनुकूल न होने के कारण मैं कई बार बीमार पड़ा। बम्बई-अस्पताल के आयुर्वेदविभाग के प्रधान चिकित्सक श्री कन्हैयालाल भेड़ा बराबर निस्वार्थ भाव से मेरी चिकित्सा करते रहे। उन्हें मेरा आशीर्वाद ।
श्री काशीनाथ सराक विगत २२ वर्षों से मेरे साथ निरन्तर रह रहे है और इस वृद्धावस्था में मेरे हाथ-पाँव है। विनीत शिष्य से भी अधिक भक्ति और श्रद्धा से वह मेरी उचित सेवा करते रहे हैं। मैं अंतःकरणपूर्वक चाहता हूँ कि शासन-देव उनको सहायक बनें।
इस शोधकार्य में श्री ज्ञानचन्द्र विगत ४ वर्षों में बराबर मेरे साथ रहे। प्रस्तुत पुस्तक को रंग-रूप देने में उन्होंने जो सहायता की तथा समय-समय पर वे मुझे जो साहित्यिक और उपयोगी सूचनाएँ और परामर्श देते रहे, उसके लिए उन्हें जितना धन्यवाद दिया जाये वह थोड़ा है।
श्री गौड़ीजी ज्ञानभंडार बम्बई तथा जैन-साहित्य-विकास-मण्डल, अंधेरी ने अपनी पुस्तकों को उपयोग करने की जो सुविधा मुझे दी, उसके लिए ‘धन्यवाद । - जिन लेखकों की पुस्तकों का उपयोग मैंने किया है, वे भी धन्यवाद के पात्र हैं।
c/o श्री भोगीलाल लहेरचन्द
अंधेरी, बम्बई ५८ बीर संवत् २४८६, विजयादशमी २०१७ वि०
धर्म-संवत् ३६
-विजयेन्द्रसूरि
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