________________
(१३०) नहीं किया गया है ; यद्यपि हेमचन्द्राचार्य-कृत 'त्रिषष्टिशालाका-पुरुष-चरित्र' में वरिणत ६३ शलाका-पुरुषों में प्रतिवासुदेवका भी समावेश है । अतः मालूम होता है कि शास्त्रकारों ने इनका समावेश मांडलिकों में किया है।
स्वप्न-शास्त्रियों ने महाराजा सिद्धार्थ से कहा :-"त्रिशला देवी ने चउदह महास्वप्न देखे हैं। अतः हे राजन् , इससे अर्थ का लाभ होगा, पुत्र का लाभ होगा, सुख का लाभ होगा और राज्य का लाभ होगा और नवमास और साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर कुल में केतुसमान, कुल में दीप-समान, कुल में पर्वत-समान, कुल में मुकुट-समान, कुल में तिलक-समान, कुल की कीर्ति करने वाला, कुल का निर्वाह करनेवाला, कुल में सूर्य-समान, कुल का आधार, कुल की वृद्धि करनेवाला, कुल के यश को करनेवाला, कुल में वृक्ष-समान, कुल की परम्परा को बढ़ानेवाला, सुकुमार हाथ-पैरोंवाला, पूर्ण पंचेन्द्रिय शरीरवाला, लक्षण और व्यंजनों के गुणों से युक्त, मान-उन्मान-मानोन्मान प्रमाणों से सर्वांगसुन्दर, चन्द्र के समान शान्त आकारवाला, प्रियदर्शन, सुरूप पुत्र का प्रसव करेंगी।
और, वह बालक बाल्याअवस्था को जब समाप्त करेगा, तब परिपक्वज्ञानवाला होगा, जब युवावस्था को प्राप्त करेगा तब दान में शूरवीर, संग्राम में पराक्रमी और अन्त में चार दिशाओं का स्वामी चक्रवर्ती राजा होगा या
१--यहाँ लक्षण से मतलब है छत्र-चामरादि । वे लक्षण तीर्थकर और चक्रवर्ती को १००८ होते हैं। वासुदेव और बलदेव को १०८ होते हैं और अन्य पुरुषों को ३२ होते हैं। ये लक्षण हैं :
१ छत्र, २ कमल, ३ धनु, ४ रथ, ५ वज्र, ६ कछुआ, ७ अंकुश, ८ बावड़ी, ६ स्वस्तिक, १० तोरण, ११ सरोवर, १२ सिंह, १३ वृक्ष, १४ चक्र १५ शङ्ख, १६ हाथी, १७ समुद्र, १८ कलश, १६ प्रासाद, २० मीन, २१ यव, २२ यज्ञस्तंभ, २३ स्तूप, २४ कमण्डलु, २५ पर्वत, २६ चामर २७ दर्पण, २८ बैल, २६, ध्वजा, ३० अभिषेक ३१ वरदाम और ३२ मयूर,
-कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, पत्र ३५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org