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(१०८)
हे गौतम! हाँ, वह वैसा करने में समर्थ है | अलावा वह देव गर्भं को जरा सी भी पीड़ा होने नहीं देता तथा वह गर्भ के शरीर की काटाकूटी करके सूक्ष्म करके अंदर रखता है या बाहर निकालता है ।
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(५) ".... जेणेव जंबुद्दीवे दीवे भारद्देवासे जेणेव माहणकुण्डग्गामे नयरे जेणेव उसभदत्तस्स माहणस्स गिहे जेणेव देवाणंदा माहणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए समणस्स भगवओ महावीरस्स परणामं करेइ, परणामं करित्ता देवानंदाए माहणीए सपरिजणाए ओसोवरिंग दलइ, दलित्ता असुभे पुग्गले अवहरइ, अवहरिता सुभे पुग्गले पक्खिवइ, पक्खिवित्ता 'अरगुजा मे भयवं' ति कट्टु समणं भगवं महावीरं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं दिव्वेणं पहावेगं करयलसंपुडे गिण्हइ, करयल संपुडेगं गिरिहत्ता.... जेणेव तिसला खत्तिआणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिसलाए खत्तिआणीए सपरिजणाए ओसोवरिंग दल, दलित्ता असुद्दे पुग्गले अवहरइ, अवहरिता सुहे पुग्गले पक्त्रिवइ, पक्खिवित्ता समणं भगवं महावीरं अव्वाबाह अव्वाबाहेणं दिव्वेणं पहावेणं त्तिसलाए खत्तिआणीए कुच्छिसि गब्भताप साहरइ, जे विअणंसे तिसलाए खत्तिआणीए, गब्भे तं पिअ णं देवानंदाए माहणीए जालंधर सगुत्ताए कुच्छिसि गब्भताए साहरंइ, साहरित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडि गए ।
- कल्पसूत्र सुबोधिका टीका- सूत्र - २७ पत्र ६१-६५
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अर्थात्....... ( हिरण्यगमेसी ) जंबूद्वीप नामक द्वीप के भरतक्षेत्र में जहाँ ब्राह्म कुंडग्राम नामक नगर है, जहाँ ऋषभदत्त ब्राह्मएा का घर है और जहाँ देवानन्दा ब्राह्मणी है, वहाँ जाता है । जाकर भगवान् को देखते ही प्रणाम करता है । फिर परिवार सहित देवानन्दा ब्राह्मणी को अवस्वापिनी निद्रा देता है । सारे परिवार को निद्रित करके अशुभ पुद्गलों को हरण कर के शुभ पुद्गलों का प्रक्षेपन करता है । फिर 'हे भगवन्, मुझे आज्ञा दीजिए'
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