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(१००) गोचरः इत्तमाधम-मध्यमकुलेष्वरक्तद्विष्टस्य भिक्षाटनम इसलिए इसे आधार बनाने का प्रयास व्यर्थ है 'अन्तगडदसाओ' में भी ग्रह कहा गया है कि, भगवान ने पूलासपुर, द्वारका आदि में ऊँच, नीच, और मध्यम. कुलों में भिक्षा... ग्रहण का आदेश दिया। ऐसा ही वर्णन 'भगवतीसूत्र' आदि अन्य ग्रन्थों में भी आता है । अत: इनकी तुलना 'दुल्व' में आये वैशाली के प्रकरण से कैसे की जा सकती है ?
इसी भाँति श्रीमती स्टीवेंसन ने डाक्टर हारनेल की गलतियों को दोहराने के साथ एक और भयङ्कर गलती कर दी है। उन्होंने अपने ग्रन्थ 'हार्ट आव जैनिज्म' (पृष्ठ २१-२२ पर) में भगवान् को 'वैश्यकुलोत्पन्न' बताया है। उनकी इस स्थापना की पुष्टि किसी भी प्रमाण से नहीं होती।
श्रीमती स्टीवेंसन का यह सम्पूर्ण ग्रन्थ विद्वान की दृष्टि से नहीं, बल्कि एक 'मिशनरी' की दृष्टि से लिखा गया है। इसके अन्तिम प्रकरण 'एम्पटी हार्ट आव जैनिज्म' (जैन धर्म का हृदय में शून्य है) में लेखिका का विचार पूर्णतः नग्न-रूप में सम्मुख आ जाता है। जैन-शास्त्रों से अपरिचित व्यक्ति इस ग्रन्थ का उल्लेख करता है, तब तक तो क्षम्य है; पर जब विद्वज्जन इसका उल्लेख करते हैं, तो बड़ा ही अशोभनीय लगता है ।
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