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(६६) पर ग्रन्थकार 'क्षत्रिय' शब्द का भी प्रयोग करते थे। हमारे इस मत की पुष्टि 'ट्राइब्स इन ऐंशेंट इण्डिया' में डाक्टर विमलचरण लाने भी की है:. "पूर्वमीमांसा-सूत्र (द्वितीय भाग) की टीका में शवर स्वामी ने लिखा है-"राजा' तथा 'क्षत्रिय' शब्द समानार्थी हैं । टीकाकार के समय में भी आन्ध्र के लोग 'क्षत्रिय' के लिए 'राजा' शब्द का प्रयोग करते थे।"
'निरयावलियो' (पृष्ठ २७) के अनुसार वज्जी-गणसङ्घ का अध्यक्ष राजा चेटक था ! इसकी सहायता के लिए सङ्घ में से ६ लिच्छिवी और ६ मल्ल (शासमकार्य चलाने के लिए चुन लिये) जाते थे। ये 'गणराजा' कहलाते थे। इस गणसङ्घ में-जातकों के अनुसार-७७०७ सदस्य थे, जो राजा कहलाते थे। उनमें से प्रत्येक के उपराज, सेनापति, भाण्डगारिक ('स्टोरकीपर'-संग्रहागारिक) भी थे।
"तत्थ निच्चकालं रज्जं कारेत्वा वसन्तानं येव राजूनं सत्तसहस्सानि सत्तसतानि सत च राजानो होति, तत्तका, येव उपराजानो, तत्तका सेनापतिनो तत्तका भंडागारिका"
-जातकट्ठकथा, पृष्ठ-३३६ ( भारतीय ज्ञानपीठ, काशी) इन्हीं ७७०७ राजाओं में से एक राजा सिद्धार्थ भी थे।
(६) डाक्टर हारनेल का मत है कि, कोल्लागसन्निवेश भगवान् महावीर का जन्मस्थान था। वे कोल्लाग को वैशाली का एक मुहल्ला मानते हैं, इसलिए वे वैशाली को भगवान का जन्मस्थान मानते हैं। परंतु, ऊपर हम इस तथ्य का स्पष्टीकरण कर चुके हैं कि, कोल्लाग और वैशाली दो भिन्न-भिन्न स्थान थे-एक दूसरे के निकट अवश्य थे। भगवान् की जन्मभूमि न तो कोल्लाग थी और न वैशाली थी। ऊपर हम शास्त्रों का प्रमाण देकर यह सिद्ध कर चुके हैं कि, भगवान की जन्मभूमि 'कुण्डपुर' थी। यहीं भगवान ने ३० वर्ष की उम्र तक जीवन बिताया था। इस नगर से बाहर स्थित नायसण्डवए में भगवान ने दीक्षा ली । यहाँ से थलमार्ग से वे (पुलमार्ग से )
१-'ट्राइब्स इन ऐंशेंट इंडिया', पृष्ठ ३२२ ।
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