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________________ (८६) मज्झणं जेणेव माहणकण्डग्गामे नयरे, जेणेव बहुसालए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।" ( पृष्ठ १७७ ) -क्षत्रियकुण्ड के बीचो-बीच से निकल कर ब्राह्मणकुण्ड ग्राम की ओर बहुशाल चैत्य में-जहाँ महावीर स्वामी थे—वहाँ (जमालि) आया। ____ इससे स्पष्ट है कि, ब्राह्मणकुण्ड और क्षत्रियकुण्ड एक दूसरे से अति निकट थे। इस क्षत्रियकुण्ड ग्राम में 'ज्ञातृ' क्षत्रिय रहते थे। इस कारण बौद्ध-ग्रन्थों में इसका 'ज्ञातिक' 'नातिक' अथवा 'नातिक' नाम से उल्लेख हुआ है। 'नातिक' के अतिरक्त कहीं-कहीं 'नादिक' शब्द भी आया है। (१) 'संयुक्त-निकाय' की बुद्धघोष की 'सारत्थप्पकासिनी-टीका' में आया है ___ "बातिकेति द्विन्नं बातकानां गामे" (२) 'दीघनिकाय' की 'सुमंगल-विलासिनी-टीका' में लिखा है : नादिकाति एतं तळाकं निस्साय द्विण्णं चुल्लपितु महापितुपुत्तानं दे .. गामा । नादकेति एकस्मि बातिगामे ।" इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि, 'जातिक' और 'नादिक' दोनों एक ही स्थान के नाम हैं । ज्ञातृयों की बस्ती होने के कारण वही ज्ञातिग्राम अथवा 'नातिक' कहलाया और तड़ाग ( तालाब ) के निकट हाने से वही 'नादिक' नाम से विख्यात हुआ। 'नातिक' की अवस्थिति के सम्बन्ध में 'डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स' में उल्लेख आया है कि, वज्जी देश के अन्तर्गत वैशाली और कोटिग्राम के बीच में यह स्थान स्थित था (१)। उसी ग्रन्थ के द्वितीय खण्ड पृष्ठ ७२३ पर 'महापरिनिब्बान-सुत्त' के अनुसार राजगृह और कपिलवस्तु के बीच में आये स्थानों को इस प्रकार गिनाया गया है :-“कपिलवस्तु से राजगृह ६० योजन दूर था। राजगृह से कुशीनारा २५ योजन की दूरी पर था। महा१-'डिक्ज़नरी आव पाली प्रापर नेम्स', खण्ड १, पृष्ठ ६७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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