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(८२) आवश्यकचूर्णा पूर्वार्द्ध २४३, २४४, २५० (तीन बार), २५६ (दो बार), २६५ (तीन बार), २६६ ४१६ ।
आवश्यकचूर्णी उत्तरार्द्ध १६४ ।
आवश्यक चूर्णी में कुण्डपुर १३ स्थानों पर आया है, जब कि क्षत्रियकुण्ड केवल ३ स्थानों पर (पत्र २३६, २४०, २४३ ) और 'माहण' केवल २ स्थानों पर ( पत्र २३६, २४० )। इसी से स्पष्ट है कि, कोन नाम मुख्य है।
'आवश्यक नियुक्ति' (पृष्ठ ८३ । श्लोक ३०४) में महावीर स्वामी का जन्म-स्थान स्पष्टरूप से कुण्डपुर बताया गया है :
अह चित्तसुद्धपक्खस्स तेरसीपुव्वरत्तकालम्मि ।
हत्थुत्तराहिं जाओ कुंडग्गामे महावीरो॥३९४॥ -चैत्र सुदी १३ को मध्य-रात्रि के समय उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में महावारस्वामी का जन्म कुण्डग्राम में हुआ।
इसी प्रकार पृष्ठ ६५ पर भी जहाँ तीर्थंकरों की जन्मभूमियां बतायी गयी हैं, वहाँ भी श्लोक १८० में महावीर स्वामी का जन्मस्थान कुण्डपुर ही लिखा है।
उपर्युक्त प्रमाणों से स्पष्ट है कि, भगवान् महावीर का जन्म कुण्डपुर नामक ग्राम में हुआ। उसका उत्तर भाग 'क्षत्रिय कुण्ड' और दक्षिण भाग 'ब्राह्मए कुण्ड' के नाम से विख्यात था। और, वह मज्झिम देश तथा विदेह के अंतर्गत था। हम ऊपर सिद्ध कर आये हैं कि, मज्झिम देश आर्यावर्त का नामान्तर मात्र है । इसी के अन्तर्गत विदेह देश है । और, कुण्डपुर इस विदेह का एक नगर था। __ भगवान् को शास्त्रों में 'वेसालिय' कहा गया है। अतः इससे यह स्पष्ट है कि, वेसाली देश अथवा नगर से उनका सम्बन्ध होना आवश्यक है । और, चूंकि अब वैशाली की स्थिति स्पष्ट है, अतः उसके सम्बन्ध में किसी भी रूप में शंका करने की गुंजाइश नहीं रह जाती।
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