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( कल्पसूत्र, अनुवादक : वसन्तकुमार चट्टोपाध्याय, एम० ए० कलकत्ताविश्वविद्यालय, सन् १९५३, पृष्ठ २७ )
इन सब प्रमाणों से यही निष्कर्ष निकलता है कि, भगवान् का जन्म विदेह देश में हुआ था- -न कि, मगध देश में और न अंग देश में । इसकी पुष्टिं दिगम्बर-ग्रंथों से भी होती है ।
(४) दिगम्बर शास्त्रों में भी कुण्डपुर की स्थिति जम्बूद्वीप, भारतव में विदेह के अंतर्गत वरिणत है :
(क) उन्मीलितावधिदशा सहसा विदित्वा तज्जन्मभक्तिभरतः प्रणतोत्तमाङ्गाः । घण्टानिनादसमवेतनिकायमुख्यां
दिष्टया ययुस्तदिति कुण्डपुरं सुरेन्द्राः || १७ - ६१ ॥ -- महाकवि असग ( ६८८ ई० ) - रचित 'वर्द्धमान- चरित्र'
(ख) सिद्धार्थनृपतितनयो भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे | देव्यां प्रियकारियां सुस्वप्नान् संप्रदृश्ये विभुः ||४|| - आचार्य पूज्यपाद (विक्रमी ५ वीं शताब्दी) - रचित 'दशभक्ति', पृष्ठ ११६
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(ग) अथ देशोऽस्ति विस्तारी जम्बूद्वीपस्य भारते । विदेह इति विख्यातः स्वर्गखण्डसमः श्रियः ||१॥ तत्राखण्डलनेत्रालीपद्मिनीखण्डमण्डनम् ।
सुखांभः कुण्डमाभाति नाम्ना कुण्डपुरं पुरम् ||५||
- आचार्य जिनसेन ( विक्रमी ८ वीं शताब्दी ) - रचित ' हरिवंश पुराण'
खण्ड १, सर्ग २ |
(घ)
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भरतेऽस्मिन विदेहाख्ये विषये भवनाङ्गणे ॥ २५९ ॥ राज्ञः कुण्डपुरेशस्य वसुधारापतत्पृथुः ।
॥२५२॥
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