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________________ (७६) “समचउरससंठाणसहिते वजरिसभणारायसंघयणे" इन शब्दों में निहित है। इससे मालूम पड़ता है, उनका लक्ष्य भगवान की . जन्मभूमि की तरफ-जो मुख्य विषय था-न जाते हुए, उनके मुख्य लक्षणों ( 'वज्र ऋषभनाराचसंहनन' और समचतुरस्र संस्थान' ) की ओर अधिक गया। डाक्टर याकोबी ने 'विदेह' शब्द का अर्थ बहुत ठीक किया है। उन्होंने 'सेक्रेड बुक आव द' ईस्ट' के २२-वें खण्ड के पृष्ठ २५६ पर इसका अर्थ 'विदेहवासी' लिखा है । परन्तु, 'विदेहजच्चे' का उनका 'विदेह-निवासी' अर्थ ठीक नहीं है। 'विदेहजच्चे का अर्थ 'विदेह देश में श्रेष्ठ' होना चाहिए-कारण यह है कि, 'जच्चो जात्यः', का अर्थ 'उत्कृष्टः' होता है (आवश्यक-नियुक्ति हारिभद्रीय टीका, पत्र १८३।१ ) (ख) अब हम अपने समर्थन में कल्पसूत्र की 'सन्देहविषौषधि-टीका' (जिनप्रभसूरि-कृत) का उद्धरण देते हैं : "एतेषां च पदानां कापि वृत्तिर्न दृष्टा, अतो वृद्धाम्नायादन्यथापि भावनीयानि" (पत्र ६२) अर्थात्—'इन पदों की टीका कहीं भी नहीं देखी गयी है, अतः 'वृद्धाम्नाय' से भिन्न भी इसके अर्थ हो सकते हैं।' हमारी धारणा की पुष्टि उपयुक्त उद्धरण से पूरी-पूरी होती है। इस में सन्देह का किञ्चित् मात्र स्थान नहीं है। (ग) हमारी मान्यता का समर्थन 'कल्पसूत्र' के बंगला-अनुवाद (वसंतकुमार चट्टोपाध्याय एम्० ए०-कृत) से भी होता है । वे लिखते हैं "दक्ष, दक्षप्रतिज्ञ, आदर्श-रूपवान् , आलीन (कूर्मवत् आत्मगुप्त), भद्रक (सुलक्षण), विनीत, ज्ञात (सुविदित, प्रसिद्ध), ज्ञातिपुत्र, ज्ञातिकुलचन्द्र, वैदेह, विदेहदत्तात्मज, वैदेहश्रेष्ठ, वैदेहसुकुमार, श्रमण भगवान् महावीर त्रिंशवत्सर विदेहदेशे काटाइया माता पितार देवत्वप्राप्ति हइले गुरु जन ओ महत्तर गणेर अनुमतिलइया स्वप्रतिज्ञा समाप्त कारिया छिलेन ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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