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(६७) - (क) वैशाली लिच्छिवियों की राजधानी थी और लिच्छिवियों की राजधानी होने के कारण यह मगध अधवा अंग देश में नहीं हो सकती; क्योंकि वहाँ लिच्छिवियों का राज्य कभी नहीं रहा है। उनका राज्य, गंगा के उत्तर, विदेह में था।
(ख) वज्जी (लिच्छिवि और विदेहों का राष्ट्र) और मगध जनपदों के बीच गंगा नदी की सीमा थी।२
(ग) बिम्बिसार ने राजगह (राजगृह) से लेकर गंगा तक का पूरा मार्ग झण्डों और बन्दनवारों से सजाया था। उसी तरह से लिच्छिवियों ने . वैशाली से लेकर गंगा तक का मार्ग तोरण आदि से सज्जित किया था।'
(घ) मगध के उत्तर और गंगा के उस पार वज्जियों का राज्य था (मुख्य नगर-वैशाली) और उससे भी उत्तर की ओर मल्ल बसते थे।
(पृष्ठ ६६ की पादटिप्पणि का शेषांश) और गोविन्दराज ३०० वर्ष पूर्व हुए है। इन दोनों ने 'लिच्छवी' पाठ दिया है। 'पाइअसद्दमहण्णवो' में 'लिच्छवि' और 'लेच्छई' दोनों पर्यायवाची हैं, और 'लेच्छइ' का संस्कृत-रूप 'लेच्छकि' लिखा है।
_ 'लिच्छवि' और 'वज्जी' (संस्कृत 'वृज्जि') पर्यायवाची हैं । (देखिये 'ट्राइव्स इन ऐंशेंट इंडिया', पृष्ठ ३११)
__ मनु ने लिच्छिवियों को 'व्रात्य' लिखा है । (मनुस्मृति अध्याय १०, श्लोक १०) अर्थात् लिच्छवि-मनु के मत से-हीन क्षत्रिय थे। परन्तु, लिच्छवि हीन क्षत्रिय नहीं थे। मनु ने उन्हें व्रात्य इसलिए लिखा प्रतीत होता है; क्योंकि ये लोग व्राह्मण-धर्म के अनुयायी न होकर अर्हतों और चैत्यों की पूजा करते थे । इसका वर्णन अथर्ववेद में भी मिलता है। (१) 'डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स' भाग २, पृष्ठ ६४० । (२) संयुत्त निकाय, पहला भाग, पृष्ठ ३ । (३) 'ज्यागरैफी आव अर्ली बुद्धिज्म', पृष्ठ १० । (४) 'लाइफ आव बुद्ध', ई० जे० टामस-रचित, पृष्ठ १३ ।
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