SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५४) हिमवद्विन्ध्ययोर्मध्यं यत्प्राग्विनशनादपि । प्रत्यगेव प्रयागाच्च मध्यदेशः प्रकीर्तितः ॥ ' , -- अर्थात् उत्तर में हिमालय तक, दक्षिण में विन्ध्य तक पश्चिम में विनशन तक और पूर्व में प्रयाग तक । २ - वराहमिहिर ने मध्यदेश के अन्तर्गत निम्नलिखित देशों की गणना की है : भद्रारिमेदमाण्डव्यसाल्वनी पोज्जिहान सङ्ख्याताः । मरुवत्सघोषयामुनसारस्वतमत्स्यमाध्यमिकाः ॥ माथुर कोपज्योतिषधर्मारण्यानि शूरसेनाश्च । गौरग्रीवोद्दे हिकपाण्डुगुडाश्वत्थपाञ्चालाः ॥ साकेत कुरुकाल कोटिकुकुराश्च पारियात्रनगः । औदुम्बरकापिष्ठलगजाह्वयाश्चति मध्यमिदम् ॥ - भद्र, अरिमेद, मांडव्य, साल्व, नीप, उज्जिहान, संख्यात, मरु, वत्स, घोष, यमुना तथा सरस्वती से सम्बद्ध प्रदेश, मत्स्य, माध्यमिक, मथुरा, उपज्योतिष, धर्मारण्य, शूरसेन, गौरग्रीव, उद्देहिक, पाण्डु, गुड, अश्वत्थ, पाञ्चाल, साकेत, कंक, कुरु, कालकोटि, कुकुर, परियात्र पर्वत, औदुम्बर, कापिष्ठल, और हस्तिनापुर मध्यदेशान्तर्गत प्रदेश हैं । इसी आर्यक्षेत्र में तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, वासुदेव, प्रतिवासुदेव और बल्देव ६३ शलाका पुरुष और महापुरुष जन्म लेते रहे हैं । विदेह इस मध्यदेश अथवा आर्यावर्त के अन्तर्गत एक प्रदेश विदेह था, इसके सम्बन्ध में जैन, बौद्ध तथा वैदिक ग्रन्थों में पर्याप्त उल्लेख मिलते हैं । (१) मनुस्मृति, २ - २१ । (२) वृहत्संहिता, अध्याय १४ - श्लोक २, ३, ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy