SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४८) मगहा कोसंबी या थूणाविसओ कुणालविसओ य । एसा विहारभूमी एतावंताऽऽरियं खेत्तं ॥ (') यह आर्यक्षेत्र धर्मप्रधान भूमि है। पर, आर्यक्षेत्र की सीमा में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं। एक काल का आर्यक्षेत्र दूसरे काल में अनार्यक्षेत्र और एक काल का अनार्यक्षेत्र दूसरे काल में आर्यक्षेत्र घोषित होते रहते हैं। ५-'पृथ्वीचन्द्र-चरित्र' में श्री लब्धिसागरसूरि ने लिखा है :विहाराद्विरहात्साधोरार्या भूता अनायकाः। अनार्या अभवनदेशाः कत्यार्या अपि संप्रति । (२) ६-इस बात का ऐतिहासिक प्रमाण भी उपलब्ध है। सम्राट् सम्प्रति के समय में भगवान् महावीर के समय के बहुत से अनार्यदेश आर्य हो गये। 'ततः परं' वहिर्देशेषु अपि सम्प्रतिनपतिकालादारभ्य यत्र ज्ञानदर्शन-चारित्राणि 'उत्सर्पन्ति' स्फातिमासादयन्ति तत्र विहत्तव्यम् । 'इतिः' परिसमाप्तौ । ब्रवीमि इति तीर्थकर-गणधरोपदेशेन, न तु स्वमनीषिकयेति सूत्रार्थः । (३) (ख) बौद्ध-दृष्टिकोण बौद्ध आधार पर भारत के भूगोल और आर्यदेश की चर्चा करते हुए 'संयुक्त-निकाय' की भूमिका में श्री भिक्षु जगदीश काश्यप ने लिखा है "बुद्धकाल में भारतवर्ष तीन मंडलों, पाँच प्रदेशों और सोलह महाजनपदों में विभक्त था। महामंडल, मध्यमंडश और अन्तर्मंडल ये तीन मंडल थे। जो क्रमशः ६००, ६००, और ३०० योजन विस्तृत थे । सम्पूर्ण भारत १-बृहत्कल्पसूत्र सटीक, भाग ३, पृष्ठ ६१३ (आत्मानन्द जैन सभा भावनगर द्वारा प्रकाशित) २-आर्यदेश-दर्पण, पृष्ठ ४५ । ३-बृहत्कल्पसूत्र वृत्तिसहित (संधदास का भाष्य) भाग ३, पृष्ठ ६०७ । ४-भूमिका पृष्ठ १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy