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________________ -१.८९] विवादवाद गोष्ठीव्याख्यानयोरत्र व्याख्यावादे च गोष्ठयां च तत्त्वज्ञानहढार्थयोः। अपप्रयोगदुःशब्दपौनरुक्त्यं न दूषणम् ॥ ३३ ॥ विशिष्टैः क्रियमाणायां कथायां विदुषां सदी। तत्त्ववृत्तिदृढार्थत्वात् न स्तां जयपराजयौः॥ ३४॥ [८९. विवादवादः] विवादवादे-ययोरेव समं वित्तं ययोरेव समं श्रुतम् । तयोरेव विवादः स्यात् न तु पुष्टविपुष्टयोः ॥ ३५ ॥ नैवारोत् तुलां जातु गरिष्ठो लघुना सह । लघुरुन्नतिमायाति गरिष्ठोऽधो व्रजेद् यतः ॥३६ ।। इत्येके। असमेनापि दृप्तेन सतां वादो यशस्करः। गुणाः किं न सुवर्णस्य व्यज्यन्ते निकषोपले॥३७॥ परप्रघर्षप्रहितेन चेतसा व्यपेक्षया दर्पभरेण वा नृपाः। वादं रण वासुरवृत्तयो जनाः कर्तुं यतन्ते न तु धर्मवृत्तयः ॥३८।। ( अनुमान का गलत प्रयोग ), गटत शब्दों का प्रयोग अथवा पुनरुक्ति ये दुपण नहीं होते । गोष्ठी-चर्चा विशिष्ट विद्वाना में तत्त्वज्ञान को दृढ करने के लिए की जाती है अतः इस में जय अथवा पराजय का प्रश्न ही नहीं होता है। विवादवाद विवादवाद में जिनका धन समान हो तथा जिनका अध्ययन समान हो उन्हीं में विवाद होता है, सबल तथा दुर्बल में विवाद नहीं हो सकता। गरिष्ट (भारी अथवा श्रेष्ठ ) व्यक्ति को लघु ( हलके अथवा नीच ) व्यक्ति से तुलना नहीं करनी चाहिए क्यों कि ऐसी तुलना में हलका व्यक्ति ऊपर जाता है तथा भारी व्यक्ति नीचे जाता है ऐसा कुछ लोग कहते हैं (जिस तरह तराजू में एक ओर हलकी और दूसरी ओर भारी चीज हो तो हलकी चीज का पलडा ऊपर जाता है और भारी चीज का पलडा नीचे जाता है उसी तरह श्रेष्ठ और नीच व्यक्ति में विवाद हो तो श्रेष्ट व्यक्ति की अधोगति और नीच व्यक्ति की उन्नति होती हैं )। जो समान नहीं है किन्तु अभिमान कर रहा है उस के साथ सत्पुरुष वाद करें तो यह कीर्ति बढानेवाला होता है; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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