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________________ प्रमाप्रमेयम् [१.५८ [५८. प्रतिदृष्टान्तसमा] प्रत्युदाहरणेन प्रत्यवस्थानं प्रतिदृष्टान्तसमा जातिः। अनित्यः शब्दः कृतकत्वात् घटवत् इत्युक्ते आकाशवदमूर्तत्वात् नित्योऽपि स्यादिति ॥ [५९. उत्पत्तिसमा] कारणविघटनया कार्यानुत्पत्तिप्रत्यवस्थानम् उत्पत्तिसमा जातिः । पूर्वप्रयोगे शब्दादिकार्योत्पत्तेः प्राक् ताल्वादीनां के प्रति करणत्वं, तदा प्रतिदृष्टान्तसमा जाति प्रतिकूल उदाहरण द्वारा उत्तर देना प्रतिदृष्टान्तसमा जाति होती है । जैसे- शब्द अनित्य है क्यों कि वह कृतक है जैसे घट इस अनुमान के विरोध में यह कहना कि शब्द आकाश के समान अमूर्त है अतः वह नित्य भी सिद्ध होगा ( यहां जो कृतक होता है वह अनित्य होता है इस व्याप्ति पर आधारित हेतु के बारे में कुछ न कह कर केवल घट इस दृष्टान्त के प्रतिकूल आकाश यह दृष्टान्त उपस्थित कर दिया है अतः यह उचित दूषण नही हैप्रतिदृष्टान्तसमा जाति है)। उत्पत्तिसमा जाति कारण के विवटन द्वारा यह आपत्ति उपस्थित करना कि कार्य की उत्पत्ति ही नही हो सकती-उत्पत्तिसमा जाति होती है। उदाहरणार्थ- शब्द अनित्य है क्यों कि वह कृत्रिम है इस पूर्वोक्त अनुमान के विरोध में यह कहना कि शब्द इत्यादि कार्य के उत्पन्न होने के पहले तालु, होंठ इत्यादि किस के साधन होते हैं (-वे शब्द के कारण हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता क्यों कि ) उस समय संबद्ध कार्य का (शब्द का) अभाव हैं (शब्द अभी उत्पन्न नही हुआ है ) अतः वे तालु आदि किसी के साधन नही है अतः वे कारण भी नहीं हैं । कारण ही नहीं है तो शब्द यह कार्य किस से उत्पन्न होगा ( अर्थात वह उत्पन्न ही नहीं हो सकता ) जिस से उसे अनित्य सिद्ध किया जा सके (शब्द उत्पन्न ही नहीं हुआ तो उसे अनित्य सिद्ध करना भी संभव नहीं है ) । ( इस जाति का प्रयोग करनेवाला कहता है कि कारण और कार्य दोनों एक ही समय होने चाहिये-तालु आदि तभी कारण होंगे “जब शब्द हो -वह कारण और कार्य के क्रमशः होने को अस्वीकार करता For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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