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________________ - १.४३] . [४३. तर्कः व्याशिवलेन पररयानिष्टापादनं तः। स च आत्माश्रर इतरेतरा श्रयश्चन.काश्रयः अनवस्था अतिप्रसङ्ग इति पञ्चप्रकारः । स्वस्य स्वयमेनोत्पादक इयुक्त उत्पतिपक्ष आत्माययः । माया कुतः उता घते स्वत एवेत्यादि । स्वस्य स्वयमेव ज्ञापक इताले क्षतिपक्षे आत्मा प्रयः। ब्रह्म केन ज्ञायते स्वैनैवेत्यादि। द्वयोः परस्पर मुत्पादकत्वे उत्पत्ति इतरेतराश्रयः। माया कुत उत्पद्यते अविद्याता, अविद्या कुत उत्पद्या। मायातः इत्यादि। द्वयोः परस्परं ज्ञापकत्वे ज्ञप्तिपदे इतरेतराश्यः। आत्मा केन ज्ञायते ज्ञानेन, ज्ञानं केन ज्ञायते आत्मनेत्यादि । याद्यष्टान्तानां परस्परमुत्पादकत्वे उत्पत्तिपो चत्रकाश्रयः। जीवः कस्माजायते अविद्यातः, तक व्याप्ति के बल से प्रतिपक्षा के लिए अनिष्ट बात को सिद्ध करना तर्क कहलाता है । उस के पांच प्रकार हैं - आत्माश्रय, इतरेतराश्रय, चक्रकाश्रय, अनवस्था तथा अतिप्रसंग । ( कोई पदार्थ ) अपनी उत्पत्ति स्वयं करता है ऐसा कहने पर उत्पत्ति की दृष्टि से आत्माश्रय होता है, जैस माया कहां से उत्पन्न होती है ( यह पूछने पर कहना कि ) स्वयं ही उत्पन्न होती है। अपना ज्ञान स्वयं कराता है यह कहने पर ज्ञान की दृष्टि से आत्माश्रय होता है, जैसे - ब्रह्म किस से जाना जाता है (यह पूछने पर कहना कि) स्वयं ही जाना जाता है। दो पदार्थ एक दूसरे के उत्पादक हैं ऐसा कहने पर उत्पत्ति की दृष्टि से इतरेतराश्रय होता है, जैसे -- माया कहां से उत्पन्न होती है (यह पूछने पर कहना कि ) अविद्या से ( उत्पन्न होती है ) तथा अविद्या कहां से उत्पन्न होती है ( यह पूछने पर कहना कि ) माया से ( उत्पन्न होती है)। दो पदार्थ एक दूसरे का ज्ञान कराते हैं यह कहने पर ज्ञान की दृष्टि से इतरेतराश्रय होता है, जैसे - आत्मा का ज्ञान किस से होता है ( यह पूछने पर कहना कि) ज्ञान से (आत्मा जाना जाता है) तथा ज्ञान किस से जाना जाता है (यह पूछने पर कहना कि) आत्मा द्वारा ( ज्ञान जाना जाता है)। तीन से ले कर आठ तक वस्तुएं एक दूसरे की उत्पादक हैं ऐसा कहने पर उत्पत्ति की दृष्टि से चक्रकाश्रय होता है, जैसे - जीव किस से उत्पन्न Jajn Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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