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प्रमाप्रमेयम्
[१.४२साधन विकलसाध्याव्यावृत्तयोः सपक्षत्वात् तत्र क्वचिदप्रवृत्तस्यापि धूमादेातिवैक ज्याभावात् । सपक्षे सर्वत्राप्रवृत्तस्य विरुद्धत्वेन अनध्यवलितत्वेनैव वा व्याप्तिवैकल्यनिश्चयो नान्यथा। उभयविकले साध्यव्यावृत्या साधनव्यावृत्तिदर्शनात् व्याप्तिनिश्चयो न तवैकल्पम्। उभयाव्यावृत्ते साध्यव्यालाधनप्रतिपत्तेः तत्रापि तथा । आश्रयहीने आप्रयाभावात् आश्रयिणोः साध्यसाधनयोरप्यभावात् मातिनिश्चयो न तवैकल्यम्। अपरौ वचनदोषाविति सर्वेऽपि प्रत्यपीपदन् ततो न व्यातिवैकल्यावबोधहेतू ॥
अन्य दृष्टान्ताभास व्याप्ति से रहित नहीं होते । अन्य दृष्टान्ताभासा में धर्मी साध्य से रहित होता है अतः उस में साधन बतलाने की संभावना नही होती। इसी को स्पष्ट करते हैं । (अन्वय में ) साधन विकल तथा (व्यतिरेक में ) साध्याव्यावृत्त ये दृष्टान्ताभास सपक्ष होते हैं, और सपक्ष में कहीं कहीं धूम आदि ( हेतु) न भी हों तो भी उतने से व्याप्ति का अभाव सिद्ध नही होता। व्याप्ति के अभाव का निश्चय तब होता है जब हेतु सपक्ष में कहीं भी न हो अथवा विरुद्ध हो (विपक्ष में ही हो) अथबा अनध्यवसित हो ( सपक्ष और विपक्ष दोनों में हो)। जो दृष्टान्त उभयविकल है (साधनविकल भी है और साध्यविकल भी है ) उस में तो व्याति का निश्चय ही होगा - व्याति का अभाव ज्ञात नही होगा - क्यों कि वहां साध्य के न होने पर साधन का न होना ही देखा जाता है। इसी प्रकार उभयाव्यावृत्त (साधनाव्यावृत्त होते हुए साध्याव्यावृत्त) दृष्टान्ताभास में भी व्याति का निश्चय ही होगा क्यों कि वहां जहां साध्य है वहां साधन है इस प्रकार व्याप्ति ही ज्ञात होगी । आश्रयहीन दृष्टान्ताभास में आश्रय के ही न होने से उस में आश्रित साध्य और साधन दोनों का अभाव ज्ञात होगा, इस तरह भी व्याप्ति का निश्चय ही होगा, व्याप्ति के अभाव का ज्ञान नहीं होगा। अप्रदर्शितव्याप्तिक तथा विपरीत व्याप्तिक ये दो दृष्टान्ताभास तो वाक्य के दोष हैं यह सभी मानते हैं अतः वे व्याप्ति के अभाव का निश्चय नही कराते यह भी स्पष्ट है ( इन दो दृष्टान्ताभासों में व्याप्ति गलत नही होती, केवल उस को प्रस्तुत न करना या उलटा प्रस्तुत करना यह दोष होता है)।
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