SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रभाप्रमेयम् [१.३९ उपजीवकानुमानं बाध्यते । यत्र केवलं विरोधः तत्र प्रत्यनुमानेन प्रत्यवस्थानं प्रकरणसमा जातिरेव न तु बाधा । यत्र केवलमुपजीव्योपजीवकभावः तत्रोपजीव्यानुमानं साधकमेव न तु बाधकम् । आगमबाधा प्रेत्य सुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्वात् अधर्मवत्। लोकबाधा - नरविष्टा शुचिः नरशरीरजत्वात् स्तन शीवदिति । स्ववचनबाधा -माता मे वन्ध्या पुरुषसंयोगेऽपि अगर्भत्वात् प्रसिद्धवन्ध्यावदिति ॥ ४० [ ३९. प्रकरणसमः ] प्रकरणसमो यथा - अनित्यः शब्दः पक्षपक्षयोरन्यतरत्वात् सपक्षवदित्युक्ते नित्यः शब्दः पक्षपक्षयोरन्यतरत्वात् सपक्षवदिति । एतद् अनैकान्तिकान्नार्थान्तरम् । विपक्षेऽपि वृत्तिमत्वात् उभयत्र व्यभि - हैं) यह वास्तविक बाधा नहीं है। जहां दो अनुमानों में (विरोध न होते हुए) एक उपजीव्य तथा दूसरा उपजीवक हो वहां उनजीवन अनुमान ( उपजीवक अनुमान का ) साधक ही होता हैं, बाधक नहीं होता । आगम से बाधित साध्य का उदाहरण-धर्म मृत्यु के बाद दुःख देता है क्यों कि वह पुरुष पर अश्रित है, जैसे अधर्म ( यहां मृत्यु के बाद धर्म दुःख देता है यह साध्य आगम से बाधित है ) । लोकरीति से बाधित साध्य का उदाहरण - पुरुष का मल पवित्र है क्यों कि वह पुरुष के शरीर से निकलता है जैसे माता का दूध ( यहां मल का पवित्र होना यह साध्य लोकरीति से बाधित है ) । अपने fat से बात साध्य का उदाहरण - मेरी माता वन्ध्या है क्यों कि पुरुष के संयोग के बाद भी उसे गर्भ नहीं रहता, जैसे अन्य बन्ध्याएं ( यहां मेरी माता इस कथन से ही बन्ध्या होना यह साध्य बाधित है ) । प्रकरणस्रम हेत्वाभास इस का उदाहरण निम्नलिखित है - शब्द अनित्य है क्यों कि वह *पक्ष या सपक्ष में से एक है । यहां यह भी कहा जा सकता है कि शब्द नित्य है क्योंकि वह पक्ष या सपक्ष में से एक है ( तात्पर्य, यह हेतु पक्ष के साध्य के लिए और उस के विरुद्ध साध्य के लिए - दोनों प्रकरणों के लिए समान है ) | यह हेत्वाभास अनैकान्तिक से भिन्न नहीं है क्यों कि यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy