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________________ ३८ प्रमाप्रमेयम् [१.३७--- पक्षविपक्षः पक्षकदेशवृत्तिः यथा - सर्व द्रव्यमनित्यं क्रियावत्वात् ।। सपक्षविपक्षरूपयोः प्रागभावप्रध्वंसाभावयोः सतोरपि तत्र क्रियावत्त्वादिति हेतोरप्रवृत्तिः। पक्षरूपेषु घटपटादिषु क्रियावत्त्वमस्ति, आकाशादिषुः नास्ति । अविद्यमानविपक्षः विद्यमानस पक्षः पक्षव्यापको यथा- सर्व कार्य नित्यम् उत्पत्तिधर्मकत्वात् । सर्वमित्यस्य विपक्षाभावः । सपक्षस्य प्रध्वं साभावस्य विद्यमानत्वेऽपि हेतोरुत्पत्तिधर्मकत्वस्याप्रकृत्तिः। सर्वमिति पक्षीकृते घटपटादी उत्पत्तिधर्मकत्वं व्याप्तमस्ति। अविद्यमानविपक्षः विद्यमानसपक्षः पक्षकदेशवृत्तिर्यथा - सर्व कार्य नित्यं सावयवत्वात् । पूर्ववत्, सर्वमित्यस्य विपक्षाभावः। सपक्षे प्रध्वंसाभावे सत्यपि सावयवत्वाभावः आत्मा, काल आदि विपक्ष हैं, इन दोनों में आकाश का विशेष गुण होना यह हेतु नही है । इसी प्रकार सपक्ष में शामिल प्रागभाव अनित्य होता है उस में तथा विपक्ष में शामिल प्रध्वंमाभाव नित्य होता है उस में भी यह हेतु नही है । ( पक्ष के रूप में ) स्वीकृत शब्द में सर्वत्र आकाश का विशेष गुण होना यह हेतु व्याप्त है । सपक्ष और विपक्ष के होते हुए पक्ष के एक भाग में रहनेवाले अनध्यवसित का उदाहरण - सब द्रव्य अनित्य हैं क्यों कि. वे क्रिया से युक्त हैं। यहां प्रागभाव यह म्पक्ष है ( क्यों कि वह अनित्यः है) तथा प्रध्वंसाभाव यह विपक्ष है (क्यों कि वह नित्य है ) किन्तु इन दोनों में क्रियायुक्त होना यह हेतु नही पाया जाता। यहां पक्ष में शामिल घट, पट आदि में क्रियायुक्त होना यह हेतु है परन्तु आकाश आदि में ( वे द्रव्य हैं तथापि ) यह हेतु नहीं पाया जाता । जिस में विपक्ष न हो, सपक्ष हो तथा जो पक्ष में व्यापक हो ऐसे अनध्यवसित का उदाहरण - सब कार्य नित्य हैं क्यों कि उत्पत्ति यह उन का धर्म है। यहां सब कार्य यह पक्ष है. अतः इस में विपक्ष नही हो सकता। यहां प्रध्वंसाभाव यह सपक्ष है (क्यों कि वह नित्य है ) तथापि उस में उत्पत्ति होना यह हेतु नहीं पाया जाता। पक्ष में शामिल सब कार्यों मे - घट, पट आदि में उत्पत्ति होना यह हेतु व्याप्त है । जिस में विपक्ष न हो, सपक्ष हो तथा जो पक्ष के एक भाग में. विद्यमान हा ऐसे अनध्यवसित का उदाहरण - सब कार्य नित्य हैं क्यों कि. वे अवयवसहित हैं। यहां पूर्वोक्त उदाहरण के समान ही सब कार्य यह पक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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