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प्रमाप्रमेयम्
[१.३३
ते विपक्षाः । विपक्षरूपेषु तेषु घटपटादिषु सर्वत्र प्रमेयत्वमस्ति । पक्षविपक्षैकदेशवृत्तिर्यथा - आकाशविशेषगुणः शब्दः प्रयत्नानन्तरीयकत्वात् । पक्षतां प्रपन्ने ताल्ोष्ठपुटव्यापारघटिते शब्दे प्रयत्नानन्तरीयकत्वमस्ति, पर्जन्यगर्जनादिशब्दे नास्ति । विपक्षरूपेषु घटपटादिषु सोऽयं हेतुरस्ति । प्रागभावादौ स न संभाव्यते । पक्षव्यापको विपक्षैकदेशवृत्तिर्यथाआकाशविशेषगुणः शब्दः अस्मदादिवाह्येन्द्रियग्राह्यत्वात् । पक्षीकृतेषु शब्देषु हेतुः सर्वत्रास्ति, विपक्षरूपे घटपटादावपि हेतुरयं समस्ति, सुखादौ हेतुरयं न विद्यते । विपक्षव्यापकः पक्षैकदेशवृत्तिः यथा - आकाशविशेषगुणः शब्दः अपदात्मकत्वात् । विपक्षरूपेषु घटपटादिषु
( अतः यह पक्षविपक्षव्यापी विरुद्ध हेत्वाभास है ) । पक्ष और विपक्ष के कुछ भाग में व्यापक विरुद्ध का उदाहरण - शब्द आकाश का विशेष गुण है क्यों कि वह प्रयत्न से उत्पन्न होता है । यहां पक्ष में समाविष्ट शब्दों में जो तालु, होंठ आदि की क्रिया से उत्पन्न होते हैं उन शब्दों में प्रयत्न से उत्पन्न होना यह हेतु है, किन्तु मेवगर्जना आदि शब्दों में यह हेतु नहीं है (वे शब्द प्रयत्नजन्य नहीं होते ); तथा घट, पट आदि विपक्षों में यह हेतु है किन्तु प्रागभाव आदि में नही है प्रागभाव आदि प्रयत्नजन्य नही होते ) ( अतः यह पक्ष और विपक्ष दोनों के एक भाग में रहनेवाला विरुद्ध हेत्वाभास है ) । पक्ष में व्यापक और विपक्ष के एक भाग में रहनेवाले विरुद्ध का उदाहरण शब्द आकाश का विशेष गुण है क्यों कि वह बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात होता है । यहां शब्द इस पक्ष में बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात होना यह हेतु सर्वत्र व्यात है, घट पट आदि विपक्ष में भी यह हेतु है किन्तु सुखदुःख आदि विपक्ष में यह हेतु नहीं हैं ( वे बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात नही होते ) ( अतः यह पक्षव्यापी विपक्षैकदेशवृत्ति विरुद्ध हेत्वाभास है ) । विपक्ष में व्यापक तथा पक्ष के एक भाग में रहनेवाले विरुद्व का उदाहरण - शब्द आकाश का विशेष गुण है क्योंकि वह पदरूप नहीं है । यहां घट पट आदि विपक्ष में सर्वत्र पदरूप न होना यह हेतु व्याप्त है, पक्ष में समाविष्ट नदी का ध्वनि, मेवगर्जना आदि शब्दों में भी यह हेतु है ( वे शब्द पदरूप नही होते ) किन्तु तालु, होंठ आदि की क्रिया से उत्पन्न शब्दों में यह हेतु नही है ( वे शब्द पदरूप
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