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________________ ३१ --१.३३] विरुद्ध हेत्वाभास सर्वत्र बाह्येन्द्रियग्राह्यत्वमस्ति । पक्षविपक्षकदेशवृत्तिर्यथा-नित्यः शब्दः प्रयत्नजन्यत्वात् । पक्षीकृते ताल्वोष्ठपुटव्यापारजनिते शब्दे प्रयत्नजन्यत्व मस्ति, नदीघोषमेघगर्जनादौ तन्नास्ति, विपक्षरूपे घटादौ तद् विद्यते, प्रागभाये तन्नास्ति। पक्षकदेशवृत्तिः विपक्षव्यापको यथा-नित्या पृथिवी कृतकत्वात् । पक्षरूपे पृथिव्यादौ कृतकत्वमस्ति, पृथ्वीगततत्स्वरूपपरमाणुषु तदपि नास्ति, विपक्षरूपे अनित्ये घटपटादौ सर्वत्र कृतकत्वं व्यातमस्ति । [३३. रापक्षाभावे विरुद्धभेदाः] असति सपक्षे चत्वारो विरुद्धाः। पक्षविपक्षव्यापको यथाआकाशविशेषगुणः शब्दः प्रमेयत्वात् । पक्षीकृते शब्दे सर्वत्र प्रमेयत्वमस्ति । शब्दं विहायान्यपदार्थाः आकाशविशेषगुणा न भवन्ति अत एव अभाव होता है उसे प्रागभाव कहते हैं वह स्वाभाविक होता है प्रयत्ननिर्मित नहीं) ( इस प्रकार यह हेतु पक्षविपक्षैकदेशव्यापी विरुद्ध हेत्वाभास है)। पक्ष के एक भाग में रहनेवाला और विपक्ष में व्यापक विरुद्ध हेत्वाभास इस प्रकार होता है -पृथिवी नित्य है क्यो कि वह कृतक है। यहां पृथिवी इस पक्ष में कृतक होना ( यह हेतु ) है, किन्तु पृथ्वी में समाविष्ट उस के स्वरूप के परमाणुओं में वह (कृतक होना) नही है (न्यायमत के अनुसार पृथ्वी आदि के परमाणु नित्य हैं, वे किसी के द्वारा बनाये नहीं जाते, उन परमाणुओं से ईश्वर पृथ्वी आदि का निर्माण करता है, अतः पृथ्वी कृतक है किन्तु पृथ्वी- परमाणु कृतक नही हैं ), घट पट इत्यादि विपक्ष में (अनित्य पदार्थों में ) सर्वत्र कृतक होना ( यह हेतु) व्याप्त है ( अतः यह पक्षैकदेशवृत्ति विपक्षव्यापक विरुद्ध हेत्वाभास है)। सपक्ष के अभाव में विरुद्ध हेत्वाभास के चार प्रकार ___ सपक्ष न हो तो विरुद्ध हेत्वाभास के चार प्रकार होते हैं। पक्ष और विपक्ष में व्यापक विरुद्ध का उदाहरण-शब्द आकाश का विशेष गुण है क्यों कि वह प्रमेय है। यहां प्रमेय होना यह हेतु शब्द इस पक्ष में सर्वत्र व्याप्त है, शब्द को छोड अन्य पदार्थ आकाश के विशेष गुण नही होते अतः वे सब विपक्ष हैं, उस घट पट आदि विपक्ष में सर्वत्र प्रमेय होना यह हेतु है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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