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________________ तुलना और समीक्षा ५ गुंजा = ४ काकिणी = ३ निष्पाव = १ कर्ममाष; १२ कर्ममात्र १ मंडल १६ कर्ममाष = १ सुवर्ण । गणिमाप्रमाण की तालिका:- - एक, दस, सौ, हजार, दसहजार, सौ हजार, दस सौ हजार, कोटि । अवमान के उदाहरणः - हाथ, दण्ड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष, ८ यत्र = १ अंगुल, ६ अंगुल २ वितस्ति = १ रत्नि, २ रत्नि १ कुक्षि, २ कुक्षि = १ धनुष, युग, नालिका, मुसल या अक्ष ), २००० दण्ड ४ गव्यूति = १ योजन | मृसल । क्षेत्रप्रमाण तथा कालप्रमाण ( परि० ९२६-१२७ ) क्षेत्रप्रमाण का यहां जो वर्णन दिया है वह कुछ विस्तार से अनुयोगद्वारसूत्र (सू. १३३ ) में पाया जाता है । वह तालिका इस प्रकार है - ८ ऊर्ध्वरेणु = १ त्रसरेणु, ८ त्रसरेणु = १ रथरेणु, ८ स्थरेणु = १ उत्तमभोगभूमिजकेश, ८ उत्तमभोगभूमिजकेश = १ मध्यमभोग भूमिजकेश, ८ मध्यमभोगभूमि जकेश = १ जघन्यभोगभूमिजकेश, ८ जघन्य भोगभूमिजकेश = १. विदेहक्षेत्रजकेश, ८ विदेहक्षेत्रजकेश = १ भरत ऐरावत क्षेत्रजकेश, ८ भरत - ऐरावत क्षेत्रजकेश = १ लिक्षा; ८ लिक्षा २ यूका, ८ यका = १ यत्र.. १ पाद, २ पाद १ वितस्ति, गणितसारसंग्रह ( अ. १, श्लो. २५ - ३१ ) में प्रायः है, अन्तर यह है कि उर्ध्वरेणु के लिए अणु, यूका के लिए तिल रत्नि के लिए हस्त तथा गव्यूति के लिए क्रोश शब्द का प्रयोग वहां विदेहक्षेत्र केशमाप का उल्लेख नही है तथा कुक्षि का नही है | १५५ - Jain Education International 3. दण्ड ( अथवा १ गव्यूति, For Private & Personal Use Only यही तालिका तिलोयपण्णत्ती ( अ. १, गा. ९३ - १३२) में भी यह तालिका प्राप्त या सर्पप, . किया है । उल्लेख भी होती है । कालप्रमाण का वर्णन अनुयोगद्वारसूत्र (सू. १३४ ) में विस्तार से मिलता है । वहां की तालिका इस प्रकार है - असंख्यात समय = १ . आवलि, संख्यात आवलि = १ उच्छ्वास, ( इसी को निश्वास या प्राण कहते हैं ) 2. www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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