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________________ ( २. " दिया है तथा अन्तिम पुष्पिका में इसे सिद्धान्तसार मोक्षशास्त्र का प्रमाणनिरूपण नामक पहला परिच्छेद बतलाया है । इन में से हम ने पहला नाम ही शीर्षक के लिए उपयुक्त समझा है क्यों कि एक तो उस का उल्लेख पहले हुआ है, दूसरे, वह ग्रन्थ के विषय के अनुरूप है तथा ग्रन्थसूचियों में भी वही उल्लिखित है । ग्रन्थकर्ता द्वारा उल्लिखित दूसरे नाम के सिद्धान्तसार तथा मोक्षशास्त्र ये दोनों अंश दूसरे ग्रन्थों के लिए प्रयुक्त होते आये हैं जिनचन्द्रकृत सिद्धान्तसार माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला में प्रकाशित हो चुका हैं तथा नरेन्द्रसेनकृत सिद्धान्तसारसंग्रह इसी जीवराज ग्रन्थमाला में प्रकाशित हुआ है - अतः इस नाम को हम ने गौण स्थान दिया है। उस नाम से प्रन्थ के विषय का बोध भी नही होता । ४. विश्वतत्त्वप्रकाश तथा प्रमाप्रमेय -- यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि प्रमाप्रमेय को ग्रन्थकार ने सिद्धान्तसार - मोक्षशास्त्र का प्रमाणनिरूपण नामक पहला परिच्छेद बताया हैं, इस से अनुमान होता है कि इस ग्रन्थ का अगला परिच्छेद प्रमेयों के बारे में होगा । इसी प्रकार विश्वतत्त्वप्रकाश मोक्षशास्त्र के पहले परिच्छेद के अन्त में आचार्य ने उसे अशेषपरमतविचार यह नाम दिया है, इस से अनुमान होता है कि उस के दूसरे परिच्छेद में स्वमत का समर्थन होगा। दुर्भाग्य से इन दोनों ग्रन्थों के ये उत्तरार्ध प्राप्त नहीं हैं । एकतरह से ये दोनों पूर्वार्ध एक-दूसरे के पूरक हैं क्यों कि इस प्रमानमेय में प्रमाणों का विचार है तथा विश्वतत्त्वप्रकाश में प्रमेयों का विचार है | ५. प्रमाप्रमेय तथा कथाविचार - ग्रन्थकर्ता ने विश्वतस्त्रप्रकाश में तीन स्थानों पर कथाविचार नाम का उल्लेख करते हुए सूचित किया है कि उस में अनुमानसंबंधी विविध विषयोंकी चर्चा है । वे प्रायः सब विषय इस प्रमाप्रमेय में वर्णित हैं । तथा इस के परिच्छेद १०३ से १२२ तक विशेष रूप से कथा ( बाद के प्रकारों ) का ही विचार किया गया है । अतः सन्देह होता है. कि आचार्य ने इसी अंश का विश्वतत्त्वप्रकाश में उल्लेख किया होगा । किन्तु यह भी संभव है कि इस विषय पर उन्हों ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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