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________________ -१.११९] वाद ही तत्त्व के निश्चय का संरक्षक १११ तथा द्वितीयोऽपि हेतुः नासिद्धः। जल्पवितण्डे न निखिलवाधकनिरा. करणसमर्थे असत्साधनदूषणोपेतत्वात् अबलाकलहवत् । छलादयो वा न तखाध्यवसायसंरक्षणसमर्थाः असत्साधनदूषणत्वात् शापादिवत् । छलादीनि असत्साधनदूषणानि अन्यतरपक्षनिर्णयाकारकत्वात् आभासत्वाञ्च शापादिवत् । छलादयस्तदाभासा इति निरूपितत्वात् नासिद्धो हेतुः॥ [११९. वादस्यैव तत्वाध्यवसायसंरक्षकत्वम् ] किं च । जल्पवितण्डाभ्यां वदनात् वादी तत्त्वाध्यवसायरहित एव परनिर्मुखीकरणे प्रवृत्तत्वात् तत्वोपप्लववादिवत् । तस्मात् वाद एव तत्वाध्यवसायसंरक्षणसमर्थः प्रमाणतर्कसाधनोपालम्भत्वात् व्यतिरेके दूसरा हेतु ( बाधक आक्षेपों को दर न कर सकना ) भी असिद्ध नहीं है। जल्प और वितण्डा में सभी बाधक आक्षेपों को दूर करने का सामर्थ्य नही होता क्यों कि स्त्रियों के कलह के समान ही उन के साधन और दूषण असत होते हैं। छल आदि (जिन का प्रयोग जल्प और वितण्डा में होता है) असत् साधन व असत् दुषण हैं अतः शाप आदि के समान वे (छल आदि ) भी तत्त्व के निश्चय के रक्षण में समर्थ नहीं हो सकते। छल इत्यादि किसी एक पक्ष का निर्णय नही कर सकते, वे शाप आदि के समान आभास हैं अतः उन्हें असत् साधन और असत् दूषण कहा जाता है। छल इत्यादि आभास हैं ऐसा न्याय दर्शन में भी कहा है अतः हमारा यह कथन असिद्ध नही है। वाद ही तत्त्व के निश्चय का संरक्षक होता है ___ जल्प और वितण्डा का प्रयोग करनेवाला वादी तत्त्व के निश्चय से रहित होता है क्यों कि तत्वोपप्लव वादी के समान वह केवल प्रतिपक्षी को चुप करने के लिए ही बोलता है (अपनी कोई बात सिद्ध करना उस का उद्देश नहीं होता ) । अतः वाद ही तत्त्व के निश्चय के संरक्षण में समर्थ होता है क्यों कि वह प्रमाण और तर्क द्वारा साधन-दूषणों का उपयोग करता है जिस के प्रतिकूल कलह होता है ( झगडे में प्रमाण या तर्क का उपयोग नही होता अतः वह तत्त्व के निश्चय के संरक्षण में समर्थ नहीं है)। वाद का उपयोग कर बोलनेवाला ही तत्त्व का निश्चय कर सकता है क्यों कि वह दूसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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