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________________ -१.१०९] लक्षण विचार बादस्य निग्रहस्थानवत्वमसिद्धमिति चेन्न । वादो निग्रहस्थानवान् ' परिसमाप्तिमद्विचारत्वात् जल्पवदिति । कथाया अविशेषेण वीतरागविजिगीषुविषयत्वे 'वीतरागकथे वादवितण्डे निर्णयान्ततः। विजिगीषुकथे जल्पवितण्डे तदभावतः' इत्ययं कथाविभागो न जाघटीति॥ [१०९. वादस्य प्रमाणसाधनत्वम् ] ____ अग्रेतनाक्षपादपक्षे वादः प्रमाणतर्कसाधनोपालम्भः इत्यत्र प्रमाणं नाम न प्रत्यक्षम्। विप्रतिपनं प्रति तस्य साधनदूषणयोः असमर्थत्वात् । नागमोऽपि तं प्रति तस्यापि ताशत्वात् । अपि तु अनुमानमेव। तदष्यु जल्प दोनों तब समाप्त किये जाते हैं जब विचारविमर्श में एक पक्ष का जय और दूसरे का पराजय होता है, पराजय के कारण को ही निग्रहस्थान कहते है, अतः वाद और जल्प दोनों में निग्रहस्थान होते हैं । कथा में वीतराग तथा विजिगीषु इस प्रकार का विषयों का विशिष्ट विभाजन नही होता इस लिए 'वाद तथा वादवितण्डा वीतराग कथाएं हैं क्यों कि वे निर्णय होनेतक की जाती हैं तथा जल्प और जल्पवितण्डा ये विजिगीषु कथाएं हैं क्यों कि उन में निर्णय का अभाव होता है' यह कथा का विभाजन उचित सिद्ध नही होता । वाद का साधन प्रमाण है यह कथन उचित नहीं पूर्वोक्त नैयायिकों के कथन में वाद को प्रमाण और तर्क इन साधनदूषणों से संपन्न बतलाया है। यहां प्रमाण शब्द से प्रत्यक्ष प्रमाण का ताप्तये नहीं हो सकता क्यों कि विवाद करनेवाले के लिए प्रत्यक्ष-प्रमाण साधन या दूषण में समर्थ नहीं है (प्रत्यक्ष से ज्ञात वस्तु के विषय में वाद नही होता)। इसी प्रकार प्रमाण शब्द से आगम प्रमाण का तात्पर्य भी नही हो सकता क्यों कि इस विषय में उस की भी वही स्थिति है (प्रतिवादी के लिए आगम द्वारा कोई बात सिद्ध करना संभव नही क्यों कि उसे आगम - मान्य ही नहीं है)। अर्थात् प्रमाण शब्द से अनुमान का ही तात्पर्य समझना चाहिए । वह अनुमान भी ऐसा होना चाहिये जिस की व्याति दोनों (वादी व प्रतिवादी ) के लिए प्रमाण से सिद्ध हो तथा जो पक्षधर्मत्व से युक्त हो। अन्यथा वह अनुमान अपने पक्ष की सिद्धि या प्रतिपक्ष के दूषण में समर्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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