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________________ प्रमाप्रमेयम् [१.१०७ चेन्न । उक्तप्रमेये सत्ताधनसद्भावे सदूपणाभावः, सद्यणसद्भावे सत्साधनाभावः इति प्रागेव शिक्षाकाले निश्चितत्वात् । ततो नाभिप्रायनियमोऽपि । न वस्तुनियम इति स्वयमेव प्रत्यपीपदत् अत्रास्माकं न प्रयासः। तस्मात् वादलक्षणमयुक्तं परस्य ॥ [१०७. जल्पलक्षणखण्डनम् । जल्पे तदाभासोऽपि युज्यत इति अयुक्तम् । जल्पस्य चतुरङ्गत्वेन सभामध्ये क्रियमाणत्वात् तत्र तदाभासप्रयोगनिषेधात् । तत् कथमिति चेत् ‘स्वयं नैवाभिधेयानि छलादीनि सभान्तरे' इत्यभिहितत्वात् । अथ 'एकान्तेन तदा प्राप्ते प्रयोज्यानि पराजये' इत्यभिधानात् तत्प्रयोगो का नही हो सकेगा यह कथन भी ठीक नही। अमुक विषय में उचित साधन संभव हो तो उचित दूषण नही हो सकता तथा उचित दूषण संभव हो तो उचित साधन नही हो सकता यह तो (वे वादी और प्रतिवादी) अध्ययन के समय ही निश्चित कर लेते है । अतः ( वादी और प्रतिवादी का) अभिप्राय उचित प्रयोग का ही होगा यह नियम भी नही हो सकता । वस्तुतः उचित ही प्रयोग होता है ऐसा नियम नहीं है यह आपने स्वयं कहा है अतः इसे सिद्ध करने का प्रयास करने की हमें जरूरत नहीं है। अतः (वाद में उचित साधन और उचित दूषण ही प्रयुक्त होते हैं यह ) प्रतिपक्षी द्वारा कहा हुआ वाद का लक्षण अयोग्य है । जल्प के लक्षण का खण्डन जल्प में साधन और दूषण के आभास का भी प्रयोग होता है यह कथन उचित नही। जल्प चार अंगों से ( सभापति, सभासद, वादी तथा प्रतिवादी से) संपन्न होता है तथा सभा में किया जाता है अतः जल्प में साधनाभास तथा दूषणाभास के प्रयोग का निषेध है । वह किस प्रकार है इस प्रश्न का उत्तर है कि 'स्वयं सभा में छल इत्यादि का उपयोग कभी नहीं करना चाहिये ' ऐसा कहा गया है । यहां शंका होती है कि 'जहां पराजय निश्चित प्रतीत हो वहां छल आदि साधनाभास-दूषणाभासों का प्रयोग करना चाहिये' इस कथन से छल आदि के उपयोग का विधान भी मिलता है किन्तु यह कथन उचित नही । ऐसे छल आदि का प्रयोग करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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