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________________ ...१.१०६ वादके लक्षण का खण्डन ९५ धर्मतावैकल्यनिश्चायकसद्दषणोदभावने स्थापनाहेतोः सत्साधनत्वायोगाच्च । कथं द्वयोः सम्यक्त्वं जाघटीति । यदि यथोक्तसत्साधनोपन्यासेऽपि सदूषणोद्भावनं वोभवीति तर्हि न किंचित् सत्साधन स्यादिति न कस्यापि स्वपक्षसिद्धिः । सदपणस्यापि सत्साधनपूर्वकत्वात् तदभावे तस्याप्यभावः स्यादिति सर्व विप्लवते । तस्मादेकविषयसाधनदूषणयोरे केन आभासेन भवितव्यम् । ननु वादे सत्साधनदूषणोपन्यास इत्यभिप्रायनियमो न वस्तुनियम इति चेन्न । स्थापनाहेतोः सत्साधनत्वनिश्चयेप्रतिवादिनः सद्रूषणोदभावनाभिप्रायायोगात् । स्वहेतौ सद्वृषणोद्भावननिश्चये वादिनः सत्साधन प्रयोगाभिप्रायायोगाच्च । ननु तदभावे वादि. प्रतिवादिनोः सत्साधन दृषणप्रयोगोद्भावनाभिप्रायो न जाघटीति इति हाती हो ता ( उस का अर्थ यह है कि ) ( बादी द्वारा अपने पक्ष की) स्थापना के लिए दिया गया हेतु उचित साधन नही हो सकता। दोनों (सायन और दूषण ) उचित कैसे हो सकते हैं । यदि ऊपर कहे हुए प्रकार से उचित साधन का प्रयोग करने पर भी उचित दूषण बतलाया जा सकता हो तो कोई भी साधन उचित नही होगा अतः कोई भी अपने पक्ष को सिद्ध नही कर सकेगा । उचित दूषण भी तभी संभव है अब उचित साधन हो, यदि उचित साधन का अभाव हो तो उचित दूपण का भी अभाव होगा अतः सब गडबडी हो जायगी । इस लिए एक ही विषय में जो साधन और दूपण प्रयुक्त होते हैं उन में एक आभास होना ही चाहिए, ( या तो साधन. गलत होगा या दूषण गलत होगा) । यहां प्रतिपक्षी कहते हैं कि बाद में. उचित साधन और दूषण ही प्रयुक्त किये जाने का (वादी और प्रतिवादीका). आभिप्राय होना चाहिए यह हमारा नियम है, वस्तुतः ( उचित ही साधन और दृपण होंगे ऐसा ) नियम नहीं है, किन्तु यह कहना ठीक नहीं है । यदि मूल पक्ष की स्थापना करनेवाला हेतु उचित साधन है ऐसा निश्चय होता है तो प्रतिवादी के मन में उचित दुषण बतलाने का अभिप्राय नहीं हो सकता। यदि वादी को यह निश्चय हो कि उस के हेतु में उचित दूषण. बतलाया जा सकता है तो उस का अभिप्राय उचित साधन प्रस्तुत करने का नहीं हो सकता । ऐसा न हो तो वादी का अभिप्राय उचित साधन प्रस्तुत करने का नहीं हो सकेगा तथा प्रतिवादी का अभिप्राय उचित दृषण बतलाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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