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________________ ३८ ] विषय-परिचय त्यारे त्यारे अमुक चोक्कस समयथी ज प्राप्त थता आयुषबन्धमाटे योग्य काळे श्रीप्रज्ञापना आगममां कला आयुषवन्धना आकर्षोनी अपेक्षाए आयुषना उत्कृष्टादि स्थितिबन्ध अन्तर अधिकृत होवाथी मुख्यरूपे ते रीते घटना करी होवा छतां एकभवमां एक ज वखत आयुषबन्ध थवानां वचनोने हिसावे आयुषना ते ते स्थितिबन्ध अन्तर केटल अने केवी रीते प्राप्त थाय तेनु पण मार्गदर्शन कराव्य छे. छट्ठा एकजोवाश्रयी संनिकर्ष द्वारमां - पूर्ववत् ओघ अने आदेशथी कोई एक जीव ज्ञानावरणीयादि ते ते मूळकर्मनो उत्कृष्ट स्थितिबंध करतो होय त्यारे ते जीवने बाकीनी सात प्रकृतिओमांथी केटली प्रकृतिओ बंधाय ? अने ते प्रकृतिओनी उत्कृष्टस्थिति बंधान के अनुत्कृष्ट स्थिति बंधाय ? जो अनुत्कृष्टस्थिति बन्धाय तो ते उत्कृष्टस्थिति करतां केटली ओछी बंधाय, शुं असंख्यात भागहीन बंधाय, संख्यात भागहीन बंधाय के पछी ते करतां पण वधारे संख्यातगुणहीन के असंख्यात गुणहीन बन्धाय ? वगरे वर्णववामां आव्युं छे. एवीज रीते एक प्रकृतिनी जघन्यस्थितिने बांधता जीवने ते सिवायनी प्रकृतिओ अने तेना स्थितिबंधनुं प्रमाण केटल केटल होय छे ते बताव्यु' छे. अने ते सर्वे पदार्थोनु विवेचन करी पूर्वनी जेम ते पदार्थों यन्त्रमां गुंथी वाया छे.. सातमा नानाजीवाश्रय भङ्गविचयद्वारमां - ज्ञानावरणादि ते ते मूळकर्मनी उत्कृष्टादि ते ते स्थितिना बंधकोनी अने (उत्कृष्टादि विवक्षित स्थितिनी प्रतिपक्षभूत जे अनुत्कृष्टादिस्थिति तेना बन्धकरूप) अबन्धकोनी ते ते काळे थती प्राप्ति अप्राप्तिने अनुसारे उपलब्ध थता भांगा तावामां आव्या छे. जेमके — भङ्ग पहेलो - 'एक बंधक'. भंग बीजो - 'एक अवन्धक'. भंग बीजो- 'सर्वे बन्धको '. भंग चोथो - 'सर्वे अबन्धको'. भंग पांचमो- 'एक बन्धक, एक अवन्धक'. भंग छडो - 'एक बन्धक, अनेक अबन्धको'. भंग सातमो- 'अनेक बन्धको एक अवन्धक'. भङ्ग आठमोअनेक बन्धक, अनेक अबन्धको ' . आ आठ भांगामांथी क्यां कोना केटला भंग प्राप्त थान ते बताच्या छे अने टीकाग्रन्थमां ओघथी के विवक्षितमार्गणामां विवक्षित उत्कृष्टादि स्थितिना बन्धकजीवोनी संख्या अतिशय (असंख्य लोकप्रदेशप्रमाण के तेथी अधिक) होवाथी अने तेनी प्रतिपक्षभूतस्थितिना बन्धकोनी संख्या ते करतां पण वधारे होवाथी हंमेशां (कोई पण समये) ते विवक्षित स्थितिनो उपरोक्त आठ भङ्गमांथी मात्र आठमो भंग ज मळे छे. पण बाकीना सात भंग मळता नथी. जरी क्यांक विवक्षित स्थितिना बन्धकोनी संख्या ओछी होवाथी मात्र त्रण भांगा, तो क्यांक मार्गणानी ज अध्रुवता ( मार्गणामां जीवो क्यारेक बीलकुल न होवारूप मार्गणानी अनियमितता) वगेरे कारणे आठे आठ भांगा मळे छे इत्यादि नियमो बताववा साथे सिद्ध करी बतान्यु छे. आठमा नानाजीवाश्रय भागद्वारमां - ओघथी अने ते ते मार्गणामां ते ते कर्मनी उत्कृटादि स्थितिना बन्धको त्यां रहेला सर्व स्थितिबन्धकोना केटलामा भागे छे ? शुं संख्यातमे भागे छे के असंख्यातमे भागे छे के पछी अनंतमे भागे छे ते बताववामां आव्युं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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