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विषय-परिचय
[ ३१ कर्मनी शक्तिभेदने कारणे छे. ज्ञानादिना आवरण रूपे एक स्वभावने धारण करतां एवां कर्मदलिकोमा भिन्न भिन्न विपाकने (फळने) उत्पन्न करती ते ते दलिकसमूहमा रहेली शक्ति तेज रस अथवा अनुभाग कहेवाय छे. अने पूर्वे कही गया तेम प्रकृतिवन्ध वखते जे ते ते दलिकोमा आत्माना ते वखतना कषायादिपरिणामने अनुसारे तेवारसनु निर्माण थवु ते रसबन्ध कहेवाय छे. आरसबन्धना पण स्थितिबन्धप्रमाणनी जेम अनेक भेद पड़े छे. जेमांना अतीन्द्रिय एवा पण एकठाणीया बेठाणीया वगेरे स्थूलभेदोने बाळजीवोने समजाववा शास्त्रोमां लींबडा वगेरेना तथा शेरडी वगेरेना रसोनां दृष्टान्तो द्वारा सारो प्रयत्न पूर्वना महापुरुषोए कयों छे. प्रदेशबन्धः
पूर्वे कही गया तेवा स्वरूपवाळी विश्वना रंचे रंचमां पथराईने पड़ेली, गमे तेटला समूहमा पण दृष्टिनो विषय नहि बनती एवी मूक्ष्म कार्मणवर्गणा नामनी वर्गणामांथी जीव प्रत्येक समये पोताना मन-वचन-कायाना योगने अनुमारे अनन्तानन्त छतां ओछीवत्ती संख्यामां प्रदेशोने ग्रहण करे छे (जीव साथे प्रत्येक समये भिन्न भिन्न संख्यामां पुद्गलद्रव्यो जोडाय छे), ते भिन्न भिन्न संख्यामा प्रदेशोनु जीव साथे क्षीर-नीरनी जेम एकमेक थ ते छे प्रदेशबन्ध.
ग्रहण थतां पुद्गलोनी संख्याने अनुसारे प्रदेशबंधना अनेक भेदो पड़े छे. अर्थात् मन-वचनकायानो योग-प्रवृत्ति मंद होय छे तो आत्मा साथे जोडाता ते कर्मप्रदेशो ओछी संख्यामां होय छे. अने योग वधारे प्रमाणमां होय छे तो ते प्रदेशोनी संख्या पण वधारे होय छे. ते प्रत्येक समये आत्मा साथे जोडाता अनन्ता दलिको (प्रदेशो) मांथी अमुक चोकय भागे प्राप्त थतां दलिकोमा ज ज्ञानावरणस्वभाव उत्पन्न थाय छे, ते ज रीते दर्शनावरण वगेरे स्वभाव पण तेटला तेटलां चोकमभागे आवतां दलिकोमा ज उत्पन्न थाय छे. इत्यादि घणी विचारणाओ प्रदेशबन्धना विषयमां पण छे.
प्रकृतिवन्ध, स्थितिबन्ध, रसबंध अने प्रदेशबन्धना स्वरूपना सामूहिक दृष्टांत तरीके शास्त्रोमां मोदकनु दृष्टान्त ग्रहण करवामां आवे छे. जेम के मोदकमां सुठ-गोळ वगेरे होय ते पित्त-कफ वगेरे चोकस प्रकारना फळोने उत्पन्न करनार होई प्रकृतिवन्धस्थानीय गणाय. मोदकर्नु अमुककाळ सुधी ते स्वरूपे रहे ते स्थितिबन्धस्थानीय गणाय. तेमां रहेली तीखाश मीठाश वगेरेनी तरतमताने अनुसारे पित्तादिनी मन्दता तीव्रता आधार राखे छे तेथी तीखाश मीठाश वगेरे रसबन्धस्थानीय गणाय. ज्यारे मोदक नानो मोटो होई तेमां आवेलु ओछु वत्त दळ ते प्रदेशबन्धस्थानीय गणाय. अनुयोगद्वारो अने मार्गणाओ:
अतीन्द्रिय पदार्थोनु पण चिंतन मनन तथा सूक्ष्म अवबोध करवा माटे शास्त्रोमां अनेक
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