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________________ २१ फारसी के जिन शब्दों का इस रचना में प्रयोग हुआ है उनमेंसे कुछ ग्रन्थकारकी बोली में ढलकर इस प्रकार आये हैं :- सराइ, परगने, सरहद, फारकती, खजाना, हुकुम, फुरमान, मुसकिल, पेसकसी, गरीब, आसिखवाज, सौदा, मुलक, सरियति, खत्ररि, तहकीक, बकसीस, चाबुक, रफीक, नखासे, इजार, रेजपरेजी, बुगच्चा, जहमति, बेहया, बकवाद, फरजंद, यार, तहकीक, मसक्कति, खरीद, मजूर, चाचा, हुसियार, खुसहाल, रोजनामैं, सिताब, नफर, गैरसाल, नजरि गुजारौ, कोतवाल, हाकिम, दीवान, अहमक, बादा, स्याबास, माफ, गुनाह, उमराउ, मुकाम, साहिजादे, सुखुन, पैजार, खोसरा, आदि । यह बात ध्यान देने योग्य है कि इन शब्दों का प्रयोग प्रायः वहीं विशेषरूपसे किया गया है जहाँ मुगल राज-काजसंबंधी चर्चाका प्रसंग आया है । इससे स्पष्ट होता है कि इन विदेशी शब्दों का प्रयोग पहले मुगल अफसरोंके मुखसे हुआ और वह धीरे धीरे जन भाषा में उसकी अपनी उच्चारण-विधिके अनुसार उतरने लगा । कविने रचनाके प्रारंभ में ही कहा है कि उनके पितामह मूलदास 'मध्यदेस 'में स्थित रोहतगपुर के निवासी थे और वहीं उन्होंने हिंदुगी और पारसी पढ़ी थी तथा वे मुगल मोदी होकर मालवा आये थे । इस प्रकार यह मध्यदेशकी भाषा उस समय ' हिन्दुगी ' या हिन्दी कहलाने लगी थी, यह ध्यान देने योग्य है | स्वयं अपने भाषाज्ञान के संबंध में बनारसीदासजीने कहा है - पढ़े संसकृत प्राकृत सुद्ध | विविध देसभाषा-प्रतिबुद्ध || (६४८ ) इससे प्रतीत होता है कि उस समय भी संस्कृत और प्राकृत प्राचीन भाषाओंक अतिरिक्त प्रचलित नाना देश-भाषाओंका ज्ञान प्राप्त करना सुशिक्षाका आवश्यक अंग समझा जाता था । प्राकृत जैन विद्यापीठ मुजफ्फरपुर, बिहार, ता० ७-४-५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only हीरालाल जैन www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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