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________________ एक बार घोर वर्षा के समय इटावेके निकट आपको एक उद्दण्ड पुरुषकौ खाटके नीचे टाट बिछाकर अपने दो साथियोंके साथ लेटना पड़ा था। उस गँवार धूर्त ने इनसे कहा था कि मुझे तो खाटके बिना चैन नहीं पड़ सकती और तुम इस फटे हुए टाटको मेरी खाटके नीचे बिछाकर उसपर शयन करो | एवमस्तु ' बानारसि कहे ! जैसी जाहि परै सो सहे । जैसा कातै तैसा बुनै । जैसा बोवै तैसा उनै ॥ ३०६ पुरुष खाटपर सोया भले । तीनौ जने खाटके तले । एक बार आगरेको लौटते हुए कुर्रा नामक आममें आप और आपके साथियों पर झूठे सिक्के चलानेका भयंकर अपराध लगा दिया गया था और आपकी तथा आपके अन्य अठारह साथी यात्रियोंको मृत्युदण्ड देनेके लिए शूली भी तैयार कर ली गई थी ! उस संकटका ब्यौरा भी रोंगटे खड़े करनेवाले किसी नाटक जैसा है । उस वर्णनमें भी आपने अपनी हास्यप्रवृत्तिको नहीं छोड़ा । सबसे बड़ी खूबी इस आत्म-चरितकी यह है वह तीन सौ वर्ष पहले साधारण भारतीय जीवनका दृश्य ज्योंका त्यों उपस्थित कर देता है । क्या ही अच्छा हो यदि हमारे कुछ प्रतिभाशाली साहित्यिक इस दृष्टान्तका अनुकरण कर आत्मचरित लिख डालें। यह कार्य उनके लिए और भावी 'जनताके लिए भी बड़ा मनोरंजक होगा। बकौल 'नवीन' जी ८८ आत्मरूप दर्शनमें सुख है, मृदु आकर्षण-लीला है । और विगत जीवन-संस्मृति भी स्वात्मप्रदर्शनशीला है; दर्पण में निज बिम्ब देखकर यदि हम सब खिंच जाते हैं, तो फिर संस्मृति तो स्वभावतः नर-हिय-हर्षणशीला है ! 35 स्वर्गीय कविवर श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुरने चैतालिमें ' सामान्य लोक ' शीर्षक एक कविता लिखी है जिसका सारांश यह है: " सन्ध्या के समय काँखमें लाठी दबाए और सिरपर बोझ लिये हुए कोई किसान नदी के किनारे किनारे घर को लौट रहा हो । अनेक शताब्दियोंके बाद यदि किसी प्रकार मंत्र - चलसे अतीतके मृत्यु- राज्यसे वापस बुलाकर इस किसानको मूर्तिमान दिखला दिया जाय, तो आश्चर्य चकित होकर असीम जनता उसे चारों ओर से घेर लेगी और उसकी प्रत्येक कहानीको उत्सुकतापूर्वक सुनेगी । उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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