________________ 73 थोरे लाभ हरख बहु धरै / अलप हानि बहु चिंता करै // मुख अवध भाषत न लजाइ / सीखै भंडकला मने लाइ // 654 // भाखै अकथकथा विरतंत / ठानै नृत्य पाइ एकंत // अनदेखी अनसुनी बनाइ / कुकथा कहै सभामंहि आइ // 655 // होइ निमग्न हास रस पाइ / मृषावाद बिनु रहा न जाइ / / अकस्मात भय ब्यापै घनी / ऐसी दसा आइ करि बनी / / 656 // कबहूं दोष कबहुं गुन कोइ / जाको उदौ सो परगट होइ // यह बनारसीजीकी बात / कही थूल जो हुती बिख्यात // 657 // और जो सृछम दसा अनंत / ताकी गति जानै भगवंत / जे जे बातें सुमिरन भई / तेते बचनरूप परिनई // 658 // जे बूझी प्रमाद इह मांहि / ते काहूपै कही न जांहि / / अलप थूल भी कहै न कोइ / भाषै सो जु केवली होइ 659 दोहरा एक जीवकी एक दिन, दसा होहि जेतीक / सो कहि सके न केवली, जानै जद्यपि ठीक / 660 / मनपरजैधर अबधिधर, करहिं अलप चिंतौन / हमसे कीट पतंगकी, बात चलावै कौन / 661 / तातें कहत बनारसी, जीकी दसा अपार / कछू थूलमैं थूलसी, कही बहिर बिबहार / 662 बरस पंच पंचास लौं, भाख्यौ निज बिरतंत / आगै भावी जो कथा, सो जानै भगवंत / 663 1 अ पन / 2 उ ब बूड़े। 3 अ रसाल / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org