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दोहरा प्रथम नरोत्तमको ससुर, दुतिय नरोत्तमदास । तीजा पुरुष बनारसी, चौथा कोउ न पास ॥४०९
चौपई भाड़ा किथा पिरोजाबाद । साहिजादपुरलौं मरजाद ।। चले साहिजादेपुर गए । रथसौं उतरि पयादे भए ॥ ४१०॥ रथका भाड़ा दिया चुकाइ । सांझि आइकै बसे सराइ । आगै और न भाड़ा किया। साथ एक लीया बोझिया ॥ ४११॥ पहर डेढ़े रजनी जब गई । तब तहं मकर चांदनी भई ।। इनके मन आई यह बात । कहहिं चलहु हूवा परभात ॥ ४१२ ॥ तीनौं जनें चले ततकाल । दै सिर बोझ बोझिया नाल । चारौं भूलि परे पथमांहि । दच्छिन दिसि जंगलमैं जांहि ॥ ४१३ महाँ बीझ बन आयौ जहां । रोवन लग्यौ बोझिया तहां ॥ बोझ डारि भाग्यौ तिस ठौर । जहां न कोऊ मानुष और ।। ४१४ तब तीनिहु मिलि कियौ बिचार । तीनि भाग कीन्हा सब भार ॥ तीनि गांठि बांधी सम भाइ । लीनी तीनिहु जने उठाइ ॥४१५ कबहुं कांधै कबहूं सीस । यह विपत्ति दीनी जगदीस॥ अरध रात्रि जब भई बितीत । खिन रोवै खिन गावै गीत ४१६ चले चले आए तिस ठांउ । जहां बसै चोरन्हको गांउ ॥ बोला पुरुष एक तुम कौन । गए सूखि मुख पकरी मौन । ४१७
१बचलते साहिजादपुर । २ अ एक । ३ ख महा बिकट । ४ ब यह विपता । ५ ब राति ।
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