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विद्या पढ़ि विद्यामैं रमै । सोलह सै सतावने समै ॥ तजि कुल-कान लोककी लाज । भयौ बनारसि आसिखबाज ॥१७० करै आसिखी धरि मन धीर । दरदबंद ज्यौँ सेख फकीर ॥ इकटक देखि ध्यान सो धरै । पिता आपनेकौ धन हरै॥१७१ ॥ चोरै चूंनी मानिक मनी । आनै पान मिठाई धनी ॥ भेजे पेसकसी हित पास । आपु गरीब कहावै दास ॥ १७२ ॥ इस अंतर चौमास बितीत । आई हिमरितु ब्यापी सीत ॥ खरतर अभैधरम उबझाइ । दोइ सिष्यजुत प्रकटे आइ॥ १७३॥ भानचंद मुनि चतुर विशेष । रामचंद बालक गृह-भेष ॥ आए जती जौनपुरमांहि । कुल श्रावक सब आवहिं जांहि ॥१७४ लखि कुल-धरम बनारसि बाल | पिता साथ आयौ पोसाल ॥ भानचंदसौं भयौ सनेह । दिन पोसाल रहै निसि गेह ॥ १७५ ॥ भानचंदपै विद्या सिख । पंचसंधिकी रचना लिखै ॥ पढ़े सनातर-बिधि अस्तोन । फुट सिलोक बहु बरनै कौन ॥१७६॥ सामाइक पडिकौना पंथ । छंद कोस सुतबोध गरंथ ॥ इत्यादिक विद्या मुखपाठ । पढे सुद्ध साधै गुन आठ ॥ १७७ ॥ कबहू आइ सबद उर धरै । कबहू जाइ आसिखी करै ।। पोथी एक बनाई नई । मित हजार दोहा चौपई ॥ १७८ ॥ तामैं नवरस-रचना लिखी। पै बिसेस बरनन आसिखी ॥ ऐसे कुकबि बनारसि भए । मिथ्या ग्रंथ बनाए नए ॥ १७९ ॥
१ड ब्यापा।
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