SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तब सुधि करी सतीकी बात । खरगसेन फिर दीनी जात ।। संबत सोलहसै तेताल । माघ मास सित पक्ष रसाल ॥ ८३ एकादसी बार रबि-नंद । नखत रोहिनी वृषकौ चंद ॥ रोहिनि त्रितिय चरन अनुसार । खरगसेन-घर सुत अवतार ॥ ८४ दीनौं नाम विक्रमाजीत । गावहिं कामिनि मंगल-गीत ॥ दीजहि दान भयौ अति हर्ष । जनम्यौ पुत्र आठए वर्ष ॥ ८५ एहि बिधि बीते मास छ सात । चले सु पार्श्वनाथकी जात ॥ कुल कुटुंब सब लीनौ साथ । विधिसौं पूजे पारसनाथः ॥ ८६ पूजा करि जोरे जुग पानि । आगें बालक रोख्यौ आनि ॥ तब कर जोरि पुजारा कहै । " बालक चरन तुम्हारे गहै ।। ८७ चिरंजीवि कीजै यह बाल । तुम्ह सरनागतके रखपाल ॥ इस बालकपर कीजै दया । अब यह दास तुम्हारा भया"॥ ८८ तब सु पुजारा साथै पौन । मिथ्या ध्यान कपटकी मौन ।। घड़ी एक जब भई बितीत । सीस धुमाइ कहै सुनु मीत ॥ ८९ " सुंपिनंतर किछु आयौ मोहि । सो सब बात कहा मैं तोहि ॥ प्रभु पारस-जिनवरको जच्छ । सो मोपै आयौ परतच्छ ॥ ९॥ तिन यह बात कही मुझपांहि । इस बालककौं चिंता नांहि ॥ जो प्रभु-पास-जनमको गांउ । सो दीजै बालकको नांउ ॥ ९१॥ तौ बालक चिरजीवी होइ । यह कहि लोप भयौ सुर सोइ ॥" जब यह बात पुजारे कही । खरगसेन जिय जानी सही ॥ ९२ ॥ दोहरा हरषित कहै कुटंब सव, स्वामी पास सुपास । दुहुकौ जनम वनारसी, यहु बनारसी-दास ॥ ९३॥ १ब एकादसी रबिबार सुनन्द । २ अ निज । ३ ब पुजेरा । ४ ब सुपनंतर। ५ड भई। ६ अमानी। - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy