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________________ । दूसरे कवि हैं लालदास । ना०प्र० सभाकी खोज रिपोर्ट (१९०१)के अनुसार आगरे में लालदास नामक कावन्ने वि० सं० १७३४ में 'अवधविलास' नामका एक प्रत्य लिखा था ! मोह-विवेक जुद्ध भी इन्हींका लिखा हुआ होगा, जिसकी प्रति श्रोनाहटाजीके ग्रन्थसंग्रह में है। उन्होंने इसका आद्यन्त्य अंश भेजा है -- आदि-सकल साधु के पग परौं, रामचरन हिरदैपर धरौं । गुरु परमानंद के कि नाऊ, निरमल बुद्धि दैहि गुन गाऊं ॥ अन्त-लालदास परसादतें, सफल भए सब काज । विष्णुभक्ति आनंद बढ्यो, अति विवेकको रान ॥ तब लग जोगी जगतगुरु, जब लग रहे उदास । सब जोगी आस्था..., जय गुरु बोगीदा॥ यह प्रति सं० १७६१ की लिखी हुई है, पर इसमें रचनाकाल नहीं दिया है। नाटाजी लिखते हैं कि आगरानिवासी लालदासके इतिहास भाषा' का निर्माणकाल सं० १६४३ है, से वे ही लालदास मोहविवेकजुद्ध के कर्ता होंगे। उनका समय कोई भी हो, पर वे किसी वैष्णव सम्प्रदायके हैं। तौनरे कवि हैं गोपाल। गोपालदास व्रजवासी नामक कविकी दो रचनाओंका उल्लेर, सभाकी खोज-रिपोर्ट (सन् १९०२) में किया गया है, एक 'माह-विवेक' और दूसरी 'परिचय स्वामी दादूजी' रागसागरोद्भवमें भी इनके पद मिलते हैं । उन्होंने ' मोह-विवेक' की रचना सं० १७०० में की थी। ये सन्त दादू दयालके अनुयायी थे। इस परिचयसे हम समझ सकते हैं कि ये तीनों ही कवि अजैन हैं और अद्वैतवादी, दादूपंथी, कृष्णाजातपंथी आदि हैं और जिस प्रबोधच द्रोदयको इन्होंने अपना आधान मानकर मोहविवेकजुद्ध लिखे हैं, वह जैनधर्मको बहुत ही धृणितरूपमें चित्रित करने वाला है। तब क्या बनारसीदासजीको अपर 'मोह १- नाहटाजी लेखते है कि दादूपन्थी 'जन गोगाल' का समय खोजविवरण में १६५७ के लगभर लाया है और उनके रहमोर विवेक का. उल्लेख 'दादू सम्प्रदायका संक्षिप्त इतिहास' के यु००६ पर किया है। पर 'बन गोपाल' और 'गोपाल' दो पृथक भी हो सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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