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गणधग्वाद
लेकर वे उसके पास .. जाते हैं और उसे कहते हैं कि तुमने अपनी पत्नी रेवती को सत्य होते हा भी जो कटु वचन बहे हैं, उनका प्रायश्चित्त करना आवश्यक है । इन्द्रभूति का गण-वर्णन भगवती में तथा अन्यत्र एक समान मिलता है, वह इस प्रकार है-'उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के पास (बहुत दूर नहीं और बहुत निकट भी नहीं) ऊर्ध्वजानु खड़े होकर अधःशिर (शिर झुकाकर) और ध्यानरूप कोष्ट में प्रविष्ट होकर उनके ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति नाम के अणगार साधु, संयम और तप द्वारा प्रात्मा को शुद्ध करते हुए विचरते रहते थे। वे गौतम गोत्र वाले, सात हाथ ऊँचे, समचौरस संस्थान बाले, वनऋषभनाराच संहनन धारण करने वाले, सोने के कड़े की रेखा के समान और पद्मकेसर, के समान धवल वर्ण वाले, उग्रतपस्वी, दीप्ततपस्वी, तप्ततपस्वी, महातपस्वी, उदार, अतिशय गुण वाले, अतिशय तप वाले घोर ब्रह्मचर्य के पालन के स्वभाव वाले, शरीर के संस्कारों का त्याग करने वाले, शरीर में रहने पर संक्षिप्त एवं दूरगामी होने पर विपुल ऐनी तेजोलेश्या वाले, पूर्व के ज्ञाता, चार ज्ञान सम्पन्न और सर्वाक्षर सन्निपाती थे।"
विद्यमान अागमों का अवलोकन करने से ज्ञात होता है - कि उनमें से कई का निर्माण इन्द्रभूति गौतम के प्रश्नों के आधार पर ही हैं, ऐसे भागों में उववाइ सूत्र, रायपसेणइय, जंबूद्वीप-प्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति को गिना जा सकता है । भगवती सूत्र का अधिकतर भाग भी इन्द्रभूति के प्रश्नों का प्राभारी है, ऐसा हम कह सकते हैं । शेष प्रागमों में भी कहीं-कहीं गौतम के प्रश्न हैं। .
आगमों में इन्द्रभूति गौतम के अतिरिक्त यदि किसी दूसरे गणधर के कुछ उल्लेख हैं तो वे आर्य सुधर्मा के सम्बन्ध में हैं, किन्तु उनकी जीवन-घटनाओं का पागमों में कोई उल्लेख नहीं है, केवल यही उपलब्ध होता है कि जम्बू के प्रश्न के उत्तर में उन्होंने अमूक पागम का अर्थ कहा। .. ..." केवल भगवती सूत्र ही प्रश्न-बहुल है पर उसमें भी गौतम इन्द्रभूति के प्रश्नों की अधिकता है। यह एक महान् आश्चर्य है कि सुधर्मा की परम्परा के संघ के विद्यमान होने पर भी और प्रस्तुत प्रागमों की वाचना, परम्परा से सुधर्मा से प्राप्त होने की मान्यता होते हुए भी तथा कई अागमों की प्रथम वाचना सुधर्मा द्वारा जम्बू को दिये जाने पर भी और इस बात के उन आगमों से सिद्ध होने पर भी, समस्त प्रागमों में सुधर्मा द्वारा भगवान से पूछे गए किसी भी प्रश्न का निर्देश नहीं है । इन्द्रभूति गौतम के अतिरिक्त केवल अग्निभूति , वायुभूति तथा मंडियपुत द्वारा पूछे गये कुछ प्रश्नों का उल्लेख भगवती में है.। , ,
इन्हें छोड़कर किसी और गणधर द्वारा किया गया प्रश्न अागमों में दृष्टिगोचर नहीं होता।
1. उपासकदशांग अ० 8
भगवती शतक 1 (विद्यापीठ, प्रथम भाग पृ० 33) 3. ज्ञाताधर्मकथांग, अनुत्तरोपपातिक, विपाक, निरयावलिका सूत्रा के प्रारम्भिक वक्तव्य म
स्पष्ट है कि उनकी प्रथम वाचना आर्य सुधर्मा ने जम्बू को दी। 4. 5. भगवती 3.1 6. भगवती 3.3
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