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गणधरवाद
का निर्देश है । साथ ही इनकी योग्यता के विषय में लिखा है कि सभी गणधर द्वादशांगी तथा चौदह पूर्व के धारक थे। यह भी कहा है कि सभी गणधर राजगृह में मुक्त हुए; उनमें से स्थविर इन्द्रभूति तथा सुधर्मा के अतिरिक्त सभी ने भगवान् महावीर के जीवन-काल में ही मोक्ष प्राप्त किया था। इस समय जो श्रमण संघ है, वह प्रार्य सुधर्मा की परम्परा में है, शेष गणधरों का परिवार विच्छिन्न है । स्थविर सुधर्मा के शिष्य आर्य जम्बूस्वामी थे और उनके शिष्य प्रार्य प्रभव, इस प्रकार प्रागे स्थविरावलि का वर्णन किया गया है। सभी गणधरों के विषय में उपर्युक्त सामान्य बातें उक्त आगम में वर्णित हैं।
कल्पसूत्र में प्रधान गणधर इन्द्रभूति के विषय में लिखा है कि जिस रात्रि में भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ, उसी रात को भगवान् के ज्येष्ठ-अन्तेवासी गौतम इन्द्रभूति गणधर का भगवान् महावीर सम्बन्धी प्रीति-बन्धन टूट गया और उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । एक जगह यह भी लिखा है कि भगवान् महावीर के इन्द्रभूति प्रमुख 14000 शिष्य थे। इससे ज्ञात होता है कि सभी गणधरों में इन्द्रभूति प्रमुख थे और उन्हें भगवान् से अपार प्रेम था । भगवान् के जीवन-काल में उन्हें केवलज्ञान नहीं हुअा था, इस बात का समर्थन भगवती सूत्र के एक प्रसंग से भी होता है ।
भगवान् महावीर और इन्द्रभूति गौतम का सम्बन्ध अत्यन्त मधुर था और वह चिरकालीन भी था। भगवान् के प्रति गौतम का अपार स्नेह था, इन बातों का उल्लेख भगवती के एक संवाद में दृष्टिगोचर होता है । भगवान् गौतम से कहते हैं, हे गौतम ! तू मेरे साथ बहुत समय से स्नेह से बद्ध है । हे गौतम ! तूने बहुत समय से मेरी प्रशंसा की है । हे गौतम ! हम दोनों का परिचय दीर्घकालीन है। हे गौतम ! तूने दीर्घकाल से मेरी सेवा की है, मेरा अनुसरण किया है, मेरे साथ अनुकूल व्यवहार किया है । हे गौतम ! अनन्तर देवभव में और तुरंत के मनुष्य भव में इस प्रकार तुम्हारे साथ सम्बन्ध है) अधिक क्या ? मृत्यु के बाद शरीर का नाश हो जाने पर, यहाँ से चलकर हम दोनों समान, एकार्थ (एक प्रयोजन अथवा एक सिद्धि-क्षेत्र में रहने वाले), विशेषता तथा भेदरहित हो जायेंगे ।
इस प्रसंग का टीकाकार अभयदेव ने यह स्पष्टीकरण किया है कि गौतम के शिष्यों को केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई, फिर भी गौतम को नहीं हुई। गौतम इस बात से खिन्न थे, अतः भगवान् ने उक्त प्रकारेण उन्हें आश्वासन दिया।
गणधरों के जो प्रश्न उपलब्ध होते हैं, उनसे इतना तो ज्ञात होता है कि उनका स्वभाव शंका (जिज्ञासा) करने का था । गौतम इन्द्रभूति तो भगवान् से बारीक से बारीक प्रश्न पूछकर तीनों
1. कल्पसूत्र (कल्पलता) पृ० 215 2. वही पृ० 217 3. वही-सूत्र 120 4. वही-सूत्र 134 5. भगवती 14.7 6. भगवती अनुवाद 14,7, पृ० 354 भाग 3.
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