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________________ प्रस्तावना 61 विष्य में कुछ नहीं लिखा । अधिकतर यह टिप्पण भी अावश्यक के समान प्राचार्य हरिभद्र की नन्दि टीका पर होना चाहिए । नन्दिमूत्र में पाँच ज्ञानों की विवेचना है, अत इस टिप्पण का भी यही विषय होना चाहिए । 10. विशेषावश्यक विवरण : यह वही ग्रन्थ है जिसके एक प्रकरण के आधार पर प्रस्तुत अनुवाद किया गया है। आवश्यक सूत्र के सामायिक-अध्ययन तक का भाष्य प्राचार्य जिनभद्र ने लिखा था। इस भाष्य की स्वोपज्ञ आदि अनेक टीकाएँ थीं, किन्तु प्राचार्य मलधारी की टीका की रचना के बाद वे सभी टीकाएँ उपेक्षित हो गई । यही कारण है कि इसकी प्रति अनेक भण्डारों में उपलब्ध है। यह टीका विशद और सरल है और दार्शनिक विषयों को अत्यन्त स्पष्ट करती है, अत: अन्य टीकानों की अपेक्षा · इसका महत्त्व बढ़ गया है । अन्य टीकाएँ अत्यन्त संक्षिप्त हैं और यह अति विस्तृत है, इसलिए इसका ‘बृहद्वृत्ति' यह सार्थक नाम प्रसिद्ध हुआ, किन्तु ग्नन्थ कार ने तो इसे वृत्ति ही कहा है । . वि० सं० 1175 की कातिक सुदि पंचमी के दिन प्राचार्य ने इस वृत्ति को पूर्ण किया. इसका परिमाण 28000 श्लोक जितना है। यह वत्ति यशोविजय ग्रन्थ माला में प्रकाशित हुई है और इसका गजराती भापान्तर नागमोदय समिति ने दो भागों में प्रकाशित किया है। इस वत्ति के लेखन कार्य में जिन व्यक्तियों ने प्राचार्य मलधारी को सहायता प्रदान की थी, उनके नामों का निर्देश प्राचार्य ने ग्रन्थ के अन्त में किया है, वह इस प्रकार है : ___ 1. अभयकुमारगणि, 2. धनदेवरणि, 3. जिनभद्रगणि, 4. लक्ष्मणगरिण तथा 5. विबुधचन्द्र नाम के मुनि और 1. श्री. महानन्दा तथा 2. महत्तरा श्री वीरमति गणिनी नाम की साध्वियाँ। इस ग्रन्थ के अन्त में भी वही प्रशस्ति दी गई है जो बन्धशतक-वृत्ति के अन्त में है, केवल उपान्त्य श्लोक में शतकवृत्ति के स्थान पर 'प्रकृतवृत्ति' लिखा है और अन्तिम श्लोक नया रना है जिसमें लेखनकाल वि० सं० 1175 दिया गया है। 9. गणधरों का परिचय ग्रागमों में गणधरों के सम्बन्ध में बहुत ही कम उल्लेख हैं । समवायांग सूत्र में गणधरों के नामों तथा प्रायु के विषय में बिखरी हुई बातें उपलब्ध हैं। कल्पसत्र में भगवान् महावीर का जीवन-चरित्र वर्णित है, किन्तु उसमें गणधरवाद का कोई भी उल्लेख नहीं है । कल्पसूत्र की टीकाओं में गणधरवाद के प्रसंग का वर्णन है । कल्पसत्र में स्थविरावलि के प्रकरण में कहा है कि भगवान महावीर के नव गण और ग्यारह गणधर थे। उसके स्पष्टीकरण में कल्पसूत्र में 11 गणधरों के नाम, गोत्र तथा प्रत्येक की शिष्य संख्या 1. समवा पांग-11, 74, 78, 92, इत्यादि। 2. कल्पसूत्र (कल्पलता) पृ० 215. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001850
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Canon
File Size9 MB
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