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प्रस्तावना
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नाम् निर्देश भी पूरा नहीं दिया गया है, किन्तु प्राचार्य ने टोका में इन सब का मनोरम निरूपण किया है। इसी प्रकार जहाँ-जहाँ विशेष विवरण की प्रावश्यकता थी, वहाँ-वहाँ प्राचार्य ने निस्संकोच होकर विस्तारपूर्वक वर्णन किया है इस समस्त विवरण से ज्ञात होता है, कि कर्मशास्त्र जैसे प्रति गहन माने जाने वाले विषय को भी वे अत्यन्त सरलता से उपस्थित कर सकते थे। इससे सिद्ध होता है कि वे इस विषय में निष्णात थे। मूल की केवल 106 गाथानों की उन्होंने 374) श्लोक प्रमाण वृत्ति लिखी है।
इस ग्रन्थ के अन्त में जो प्रशस्ति है, वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है, अतः उसे यहाँ उद्धृत करना उचित प्रतीत होता है :- ..
'श्रीप्रश्नवाहनकुलाम्बुनिधिप्रसूतः, शोरगीतलप्रथितकोतिरुदीर्णशाखः ।। विश्वप्रसाधितविकल्पितवस्तुरुच्चैश्छायाश्रितप्रचुर निर्वतभव्यजन्तुः ।।।
ज्ञानादिकुसुमनिचितः फलित: श्रीमन्मुनीन्द्रफलवृन्दैः ।।
कल्पद्रुम ... इव. मच्छः , श्रीहर्षपुरीयनामास्ति ।2। एतस्मिन् गुणरत्नरोहरणगिरिगाम्भीर्यपाथोनिधिस्तुङ्गत्वप्रकृतिक्षमाधर पति: सौम्यत्वतारापतिः । सम्यग्ज्ञान विशुद्धसंयमतपःस्वाचारचर्यानिधिः, शान्त: श्रीजयसिंहसूरिरभवनिःसंगचडामरिणः ।।
रत्नाकरादिवैतस्माच्छिष्यरत्नं बभव तत् ।। : स वागीशोऽपि नो मन्ये यद्गुरणग्रहणे प्रभुः ।40 श्रीवीरदेवविबुधैः सन्मन्त्रातिशयप्रचुरतोयैः । द्रुम इव यः संसिक्तः कस्तद्गुणकीर्तने विबुध: 151 प्राज्ञा यस्य नरेश्वरैरपि शिरस्यारोप्यते सादरं, यं दृष्ट्वापि मुदं व्रजन्ति पर मां प्रायोऽतिदुष्टा अपि । यद्वक्त्राम्बुधिनियंदुज्ज्वलवचःपीयूषपानोद्यतैर्गोरिणरिव दुग्धसिन्धुमथने तृप्तिन' लेभे जनैः ।6। कृत्वा येन तपः सुदुष्करतरं विश्व प्रबोध्य प्रभोस्तीर्थ सर्वविदः प्रभावितमिदं तैस्तै: स्वकीयैर्गुणैः । शुक्लीकुर्वदशेषविश्वकुहरं भव्यनिबद्धस्पृहं, यस्याशास्वनिवारितं विचरति श्वेतांशुगौरं यशः । 71 यमुनाप्रवाहविमलश्रीमन्मुनिचन्द्रसूरिसम्पर्कात् । अमरसरितेव सकलं पवित्रितं येन भुवनतलम् ।8। विस्फूजन्कलिकालदुस्तरतमःसंतानलुप्तस्थितिः, सूर्येरणेव विवेकभूधर शिरस्थासाद्य येनोदयम् । सम्यग्ज्ञानकरैश्चिरन्तनमुनिक्षुण्णः समुयोतितो, मार्गः सोऽभयदेवसूरिरभवत्तेभ्य: प्रसिद्धो भुवि ।9। तच्छिष्यलवप्रायैरगीतार्थैरपि शिष्टजनतुष्ट्यै ।। श्रीहेमचन्द्रसूरिभिरियमनुरचिता शतकवृत्ति: ।101
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