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गणधरवाद
मलधारी राजशेखर ने उपर्युक्त तथ्यों में यह बात और कही है कि प्राचार्य ने वर्ष में 80 दिन की अमारी घोषणा राजा सिद्धराज से करवाई थी।
विविध-तीर्थ-कल्प में प्राचार्य जिनप्रभ ने लिखा है कि, कोका वसति के निर्माण में प्राचार्य मलधारी हेमचन्द्र का मुख्य हाथ था ।
प्राचार्य विजयसिंह ने धर्मोपदेशमाला की बृहद्वत्ति लिखी है, उसकी समाप्ति वि० सं० 1191 में हुई थी। उसकी प्रशस्ति में भी आचार्य विजयसिंह ने अपने गुरु आचार्य हेमचन्द्र मलधारी तथा उनके गुरु प्राचार्य अभयदेव का परिचय दिया है, उससे ज्ञात होता है कि वि० सं० 1191 में प्राचार्य हेमचन्द्र मलधारी का स्वर्गवास हुए बहुत वर्ष हो चुके थे; अतः इस बात को स्वीकार करने में कोई असंगति दृग्गोचर नहीं होती कि, अपने गुरु अभयदेव की वि० सं० 1168 में मृत्यु उपरान्त वे प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित हए और लगभग वि० सं० 1180 तक उस पद को सुशोभित करते रहे। इसका समर्थन इस बात से भी होता है कि, उनके ग्रन्थ के अन्त में कथित प्रशस्ति में वि० सं० 1177 के बाद के वर्ष का उल्लेख नहीं मिलता।
प्राचार्य हेमचन्द्र के अपने हाथ से लिखी हुई जीवसमास-वृत्ति की प्रति के अन्त में उन्होंने अपना जो परिचय दिया है, उसके अनुसार वे यम, नियम, स्वाध्याय, ध्यान के अनुष्ठान में रत तथा परम नैष्ठिक, अद्वितीय पण्डित और श्वेताम्बराचार्य भट्टारक थे। यह प्रशस्ति उन्होंने सम्वत् 1164 में लिखी थी। प्रशस्ति इस प्रकार है :
__ "ग्रन्थाग्र० 6627 । सम्वत् 1164 चत्र सुदि 4 सोमेऽद्येह श्रीमदणहिलपाटके समस्तराजावलि विराजितमहाराजाधिराज-परमेश्वर-श्रीमज्जयसिंहदेवकल्याणविजयराज्ये एवं काले प्रवर्तमाने यमनियमस्वाध्यायानुष्ठानरतपरमनैष्ठिकपण्डित-श्वेताम्बराचार्य-भट्टारक-श्रीहेमचन्द्राचार्येण पुस्तिका लि० श्री" - श्री शान्तिनाथजी ज्ञान भण्डार की प्रति-श्रीप्रशस्ति संग्रह अहमदाबाद-पृष्ठ 49.
8. प्राचार्य मलधारी हेमचन्द्र के ग्रन्थ _ जिस विशेषावश्यक-भाष्य-विवरण के आधार पर गणधरवाद का प्रस्तुत अनुवाद किया गया है, उसके अन्त में प्राचार्य ने एक आध्यात्मिक रूपक में इस बात का निर्देश किया है कि, उन्होंने किस उद्देश्य से किस क्रम से ग्रन्थों की रचना की है। इस रूपक का सार इस प्रकार है
____ मैं जन्म, जरा आदि दुःखों से परिपूर्ण संसार समुद्र में डूबा हुआ था, इतने में एक
1. कंदली पञ्जिका और प्राकृत व्याश्रय की वृत्ति की प्रशस्ति । जैन सा० सं० इ०
पृष्ठ 246 देखें।
विविधतीर्थकल्प पृष्ठ 77 3. श्रीहेमचन्द्र इति सूरिरभूदमुष्य शिष्यः शिरोमणिरशेषमुनीश्वराणाम् ।
यस्याधुनापि चरितानि शरच्च्छशांकच्छायोज्ज्वलानि विलसन्ति दिशां मुखेषु ।।130 पाटन भण्डार ग्रन्थ सूची देखें-पृष्ठ 313.
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