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प्रस्तावना
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प्राचार्य जिनभद्र के जीतकल्प के आधार पर सोमप्रभसूरि ने यति-जीतकल्प की रचना की और मेरुतुग ने जीतकल्पसार लिखा । 8. ध्यानशतक
इस नाम का प्राकृत-गाथा-बद्ध ग्रन्थ प्राचार्य जिनभद्र के नाम से विख्यात है। उसे शतक कहते हैं किन्तु वस्तुतः उसकी 105 गाथाएँ हैं । यह शतक आवश्यक नियुक्ति में समाविष्ट है । प्राचार्य हरिभद्र ने उसकी सभी गाथात्रों की व्याख्या भी की है, किन्तु उसमें उन्होंने इस ग्रन्थ को 'शास्त्रान्तर, कहकर भी यह नहीं बताया कि वह किसकी रचना है ? प्राचार्य मलधारी हेमचन्द्र ने भी अपनी टिप्पणी में रचयिता के विषय में कोई संकेत नहीं किया, अतः इस कृति का प्राचार्य जिनभद्र द्वारा लिखा जाना संदिग्ध है । आचार्य हरिभद्र के उल्लेख के अनुसार यह ध्यान शतक शास्त्रान्तर है, यह बात तो निश्चित ही है, किन्तु उससे यह अर्थ फलित नहीं होता कि यह प्राचार्य भद्रबाहु की कृति नहीं है ।
वस्तुतः आवश्यक नियुक्ति में अनेक बार तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है, विशेषत: जहाँ नवीन प्रकरण शुरु होता है, वहाँ नमस्कार किया गया है । इसके अनुसार ध्यान प्रकरण के प्रारम्भ में भी प्राचार्य ने नमस्कार किया है। मध्य में आये हुए इस नमस्कार के औचित्य को सिद्ध करने के लिए प्राचार्य हरिभद्र ने यह लिखा है कि अब ध्यानशतक में बहुत कुछ कहना है, अथवा यह विषय अत्यन्त महत्वपूर्ण है, अत: वास्तव में यह प्रकरण शास्त्रान्तर का स्थान ग्रहण करता है । इसीलिए प्राचार्य ने प्रारम्भ में नमस्कार किया है, इससे ज्ञात होता है कि प्राचार्य हरिभद्र ने ध्यानशतक में प्रतिपादित विषय की महत्ता के कारण ही इसे शास्त्रान्तर कहा है। इस उल्लेख से हम यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकते कि प्राचार्य हरिभद्र ने प्राचार्य जिनभद्र के इस ध्यानशतक को उपयोगी समझ कर आवश्यक नियुक्ति में समाविष्ट कर लिया और उसकी व्याख्या भी कर दी । यदि यह कृति भद्रबाहु की न होती तो हरिभद्र स्पष्टत: इस बात को लिखते और यह भी बताते कि यह किसकी रचना है ? ऐसी किसी भी सूचना के अभाव में इस प्रकरण को आवश्यक नियुक्ति का अंश ही समझना चाहिए।
ध्यानशतक को श्री विनय-भक्ति-सुन्दर-चरण ग्रन्थमाला के तीसरे पुष्प के रूप में प्राचार्य जिनभद्र की कृति बताकर पृथक् भी प्रकाशित किया गया है।
7. मलधारी हेमचन्द्राचार्य
गुजरात के इतिहास का स्वर्णयुग, सिद्धराज जयसिंह और राजर्षि कुमारपाल का राज्य-काल है। इस युग में गुजरात की राजनैतिक दृष्टि से उन्नति हुई, किन्तु इससे भी बढ़कर उन्नति संस्कार निर्माण की दृष्टि से हुई। इसमें जैन अमात्य, महामात्य और दण्डनायकों की
1. 2.
आवश्यक नियुक्ति की गाथा 1267 के बाद ध्यानशतक का समावेश है। ध्यानशतकस्य च महार्थत्वादवस्तुतः शास्त्रान्तरत्वात् प्रारम्भ एव विघ्न विनायकोपशान्तये मङ्गलार्थमिष्टदेवतानमस्कारमाह ।
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