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हुई विशेषावश्यक भाष्य की प्रतिलिपि मुझे पाठान्तर लेने हेतु प्रदान की और प्रस्तावना पढ़कर उन्होंने बृद्धिपत्र की सूचना दी, एतदर्थ मैं उनका भी ऋणी हूँ । अन्त में सेठ श्री भोलाभाई दलाल नौर श्री प्रेमचन्द भाई कोटा वालों की रुचि ही इस ग्रन्थ को प्रस्तुत रूप में निर्माण करने में निमित्त बनी है, अतः उनका भी आभार मानता हूँ ।
गणधरवाद
प्रस्तुत ग्रन्थ पाठकों और विवेचकों के समक्ष उपस्थित है । अब इसमें जो कोई दोष या त्रुटि हो उसका शोधन करने का कार्य उनका है । ऐसे ग्रन्थों की द्वितीयावृत्ति भाग्य से ही प्रकाशित होती है, तब भी सुयोग मिला तो उचित संशोधन करने का लाभ अवश्य लूंगा ।
बनारस 30.8.52
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- दलसुख मालवरिया
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