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समय की गणना की गई है, उतने समय क्षेत्र के विषय में ही - अर्थात् मनुष्य क्षेत्र अथवा ढाई द्वीप के विषय में संक्षिप्त कथन है, किन्तु इसे संक्षेप में 'क्षेत्र समास' कहते हैं ।
इस ग्रन्थ में जम्बू द्वीप, लवण समुद्र, धातकी खण्ड, कालोदधि और पुष्करवर द्वीपार्ध नामक पाँच प्रकरणों में इन द्वीपों तथा समुद्रों का वर्णन किया गया है । जम्बू द्वीप का निरूपण करते समय सूर्य, चन्द्र तथा नक्षत्रों की गति के विषय में विस्तार पूर्वक प्ररूपणा की गई है । लवणोदधि के वर्णन के समय अन्तर- द्वीपों की भी विस्तृत प्ररूपणा है । यह समझना चाहिए कि प्राचार्य ने इस ग्रन्थ में जैन भूगोल और खगोल का समावेश किया है, साथ ही इसमें गणिता• नुयोग का भी वर्णन है ।
जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर ने इस ग्रन्थ को प्राचार्य मलयगिरि की टीका के साथ प्रकाशित किया है, उसमें कुल 656 गाथाएँ हैं । जिस गाथा में ग्रन्थ की गाथा - संख्या का उल्लेख है, उस गाथा' में एक पाठान्तर के अनुसार 655 गाथाओं का निर्देश है, किन्तु श्राचार्य मलयगिरि ने 637 गाथाओं का पाठ स्वीकृत किया है, फिर भी उन्होंने जो व्याख्या की है, वह 656 गाथाओं की है । ग्रन्थ- प्रशस्ति रूप अन्तिम गाथा को निकाल कर पाठान्तर - निर्दिष्ट शेष 655 गाथाएँ मूल ग्रन्थ की मानी जा सकती हैं । प्राचार्य मलयगिरि ने किसी भी गाथा के सम्बन्ध में प्रक्षेप की सूचना नहीं दी है । ऐसा क्यों हुआ ? यह अनुमान करना कठिन है । सम्भव है कि मूल गाथाएँ 637 ही हों, बाद में उनमें प्रक्षेप हुआ हो, परन्तु श्राचार्य मलयगिरि उस प्रक्षेप का पता न लगा सके हों । उन्होंने बिना गिने ही जो पाठ मिला, उसकी टीका लिख दी, परन्तु गाथा का पाठान्तर सम्भवतः उनके ध्यान में नहीं आया; फिर भी यह पाठान्तर उपलब्ध है, अतः प्रक्षेप की सम्भावना प्रयथार्थ नहीं है ।
रचना के उपरान्त इस ग्रन्थ का अत्यधिक प्रचार हुआ। यही कारण है कि इस ग्रन्थ के अनुकरण पर अनेक ग्रन्थ रचे गये हैं और इस पर अनेक टीकाएँ भी रची गई हैं । जिन रत्न कोष में इस ग्रन्थ की दस टीकाओं का उल्लेख है :
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गणधरवाद
1. प्राचार्य हरिभद्रकृत वृत्ति - यह वृत्ति प्रसिद्ध याकिनीसूनु हरिभद्र की नहीं, किन्तु बृहद्गच्छ के मानदेव - जिनदेव उपाध्याय के शिष्य हरिभद्र कृत है । यह संवत् 1185 में लिखी गई ।
2.
सिद्धसेनसूरि कृत वृत्ति - - उपकेश गच्छ के देवगुप्तसूरि के शिष्य सिद्धसेनसूरि ने 3000 श्लोक प्रमाण वृत्ति की रचना संवत् 1192 में पूर्ण की।
3. आचार्य मलयगिरि कृत वृत्ति -- यह वृत्ति प्रसिद्ध टीकाकार प्राचार्य मलयगिरि लिखी है । इसका प्रमाण 7887 श्लोकों का है । प्राचार्य मलयगिरि प्रसिद्ध हेमचन्द्राचार्य के समकालीन थे ।
4. विजयसिंह कृत वृत्ति -- इसकी रचना संवत् 1215 में हुई। इसका परिमाण 3256 श्लोक का है । श्री देसाई का अनुमान है कि ये विजयसिंह वही हैं जिन्होंने जम्बूद्वीप
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2.
गाथा 5.75 देखिये ।
जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास पृ० 250
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