________________
प्रस्तावना
सामायिक
इतनी प्रासंगिक चर्चा करने के पश्चात् अनुमत' द्वार की व्याख्या करके आचार्य ने 'सामायिक क्या है ? 2 इस द्वार की चर्चा प्रारम्भ की है । यहाँ नय-दृष्टि से सामायिक पर विचार किया गया है | सामायिक के भेदों पर विचार करते हुए उसके तीन भेद बताए गए हैं:सम्यक्त्व, श्रुत, चारित्र । सामायिक किस की होती है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि, जिसकी आत्मा संयम, नियम और तप में रमण करती है, उसी की सामयिक है । जो सब जीवों के प्रति समभाव रखता है, उसकी सच्ची सामायिक है । तदनन्तर सामायिक के कारण - श्राचरण का उपदेश दिया गया है। 5 'सामायिक कहाँ है' इस प्रश्न के उत्तर में क्षेत्र आदि अनेक द्वारों पर विचार किया गया है ।" "किसमें है" इस पर विचार प्रकट कर प्राचार्य ने यह भी उल्लेख किया है कि वह किस प्रकार प्राप्त होती है और साथ ही मनुष्य-भव की दुर्लभता का दृष्टान्त सहित विवेचन किया है ।" श्रुत की दुर्लभता 10 और बोधि- सामायिक को दुर्लभता का भी वर्णन किया गया है और उसकी प्राप्ति का क्रम स दृष्टान्त स्पष्ट किया गया है । 11 'वह कब तक स्थिर रहती है' इत्यादि 12 प्रश्नों का समाधान कर, सामायिक के सम्यक्त्व आदि भेदों के पर्यायों का संग्रह कर तथा उपोद्घात-निर्युक्ति के निरुक्ति नामक अन्तिम द्वार का विवेचन कर, उन प्राठ प्रसिद्ध महापुरुषों के उदाहरण दिए गए गए हैं जिन्होंने सामायिक का पालन करके महर्षि पद को प्राप्त किया । 14 उन्हें नमस्कार करने के बाद उपोद्घात नियुक्ति का प्रकरण समाप्त हो
जाता
1
उपसंहार
उपोद्घातनिर्युक्ति के उक्त विषयानुक्रम को सविस्तार इसलिए प्रतिपादित किया गया है कि पाठक यह बात समझ सकें कि आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यक के उपोद्घात के व्याज से
1.
2.
3.
4.
5.
567
6.
8.
9.
10.
11.
12.
13.
14.
आव० नि० गा० 789
17
17
39
17
"
11
11
11
17
11
"
"1
"
Jain Education International
71
"J
71
11
"
"
27
11
""
ور
"
"
790-794
795
796-97
799-803
804-829
830
831
23
832-40
841-843
844-48
849-60
861-864
865-879
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org