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यहां से भगवान् महावीर का चरित्र प्रारम्भ होता है । प्राचार्य ने निर्देश किया है कि निम्न बातों का वर्णन किया जाएगा - 1. स्वप्न, 2. गर्भापहार, 3 अभिग्रह, 4 जन्म, 5. अभिषेक, 6. वृद्धि, 7. जाति - स्मरण, 8. देव द्वारा डराने का प्रयत्न 9. विवाह, 10. अपत्य 11. दान, 12 सम्बोधन, 13. महाभिनिष्क्रमण' । महावीर ने माता-पिता
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के स्वर्गवास के पश्चात् दीक्षा ली । गोप द्वारा परीषह किए जाने के बाद शक्रेन्द्र भगवान् के पास सहायतार्थ आया, इसकी भी सूचना निर्युक्ति में है । कोल्लाक सन्निवेश में ब्राह्मण बहुल द्वारा पारणे के निमित्त वसुधारा का उल्लेख है । महावीर अपने पिता के मित्र दुइज्जत की कुटी में भी रहे। वहाँ उन्होंने पाँच तीव्र प्रभिग्रह - प्रतिज्ञाएँ स्वीकार की— 1. जहां रहने से मकान का मालिक नाराज हो वहाँ नहीं रहना, 2. प्राय: कायोत्सर्ग अवस्था में रहना, 3. प्रायः मौन रहना, 4. भिक्षा हाथ में ही लेना, पात्र में नहीं और 5. गृहस्थ को वन्दना नहीं करना ।4 कोल्लाक सन्निवेश से प्रस्थान कर उन्होंने अस्थिग्राम में चातुर्मास किया । वहाँ शूलपाणि का उपद्रव हुआ, उसने अनेक भयंकर उपसर्ग किए और अन्त में हार मानकर उसने भगवान् की स्तुति की 18
भगवान् के साधनाकालीन? विहार में उनसे गोशालक मिला । नियुक्ति में गोशालक के पराक्रम (?) भगवान् के उग्र परीषह, उपसर्ग तथा सन्मान का वर्णन कर बताया गया है कि, उन्हें जृम्भिक गाँव के बाहर, ऋजुवालुका नदी के तट पर वैयावृत्य चैत्य के निकट, श्यामाक गृहपति के क्षेत्र में, शाल वृक्ष के नीचे, षष्ठभक्त के तप की अवस्था में, उकडु प्रासन की स्थिति
में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई 18
इसके बाद प्राचार्य ने भगवान की सम्पूर्ण तपस्या का उल्लेख किया है और कहा है कि उन की छद्मस्थ पर्याय बारह वर्ष और साढ़े छह महीने की थी 110
गणधर - प्रसंग
केवलज्ञान होने के उपरान्त भगवान् महावीर रात के समय मध्यमापापा नगरी के निकट महासेन वन के उद्यान में पहुँच गए। वहाँ दूसरा समवसरण हुआ । सोमिलार्य नाम के ब्राह्मण के घर दीक्षा ( संस्कार विशेष ) के अवसर पर यज्ञवाटिका में एक विशाल समुदाय
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गणधरवाद
आव० नि० गा० 458
आव० नि० गा० 459-460
आव० नि० गा० 461
आव० नि० गा० 462-463
आव० नि० गा० 463
आव० नि० गा० 464
आव० नि० गा० 464-525 आव० नि० गा० 472-526 आव० नि० गा० 527-536
आव० नि० गा० 537-538
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