________________ 234 गणधरवाद अधवा सव्वं वत्थु पतिक्खरणं चिय सुधम्म ! धम्मेहिं ! संभवति वेति केहि य केहि या तदवत्थमच्चंतं / / 1764 // तं अप्पणो वि सरिसं ण पुव्वधम्मेहिं पच्छिमिल्लारणं / सकलस्स तिभुवरणस्स य सरिसं सामण्णधम्मेहिं / / 1765 / / को सव्वधेव सरिसोऽसरिसो वा इधभवे परभवे वा। सरिसासरिसं सव्वं णिच्चारिणच्चातिरूवं च // 1766 / / जध गियएहि वि सरिसोण जुवा भुविबालवुड्ढधम्मेहिं / जगतो वि समो सत्तादिएहिं तध परभवे जीवो // 1767 / / मणुमो देवीभूतो सरिसो सत्तादिएहि जगतो वि / देवादीहि विसरिसो णिच्चाणिच्चो वि एमेय / / 1768 // उक्करिसावकरिसता ण समारणाए वि होति जातीए / सरिस्सगाहे जम्मा दाणातिफलं विथा तम्हा // 1766 // जं च सियालो वइ एस जायते वेतविहितमिच्चादि। सग्गीयं जण्णफलं तमसम्बद्धं सरिसताए // 1800 // *छिण्णम्मि संसयम्मिं जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं / सो समणो पव्वइतो पंचहिं सह खंडियसएहि // 1801 / / *ते पव्वइते सोतुं मंडियो प्रागच्छती जिसमास / वच्चामि ण वंदामि वंदित्ता पज्जुवासामि // 1802 // *ग्राभटठो य जिणेणं जाइजरामरणविप्पमुक्केणं। गामेण य गोत्तेग य सव्वण्णू सव्वदरिसी रणं // 1803 / / *कि मण्णे बंध-मोक्खा संति त्ति संसयो तुझं / वेतपतारणं य अत्थं ग यारणसी तेसिमो अत्थो / / 1804| 1. वि मु० को०। 2. य ता०। 3. वि जण जातीए मु० को। 4. जम्हा ता। 5. इव एस ता०। 6. सग्गीयं जं च फलं म० को / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org