________________ गणधरवाद की गाथाएँ 233 अधवा इधभवसरिसो परलोगो वि जति सम्मतो तेणं / कम्मफलं पि इधभवसरिसं पडिवज्ज परलोगे / / 1781 / / किं भरिणतमिधं मणुया णाणागतिकम्मकारिणो संति / जति ते तप्फलभाजो परे वि तो सरिसता जुत्ता // 1782 / / अध इध सफलं कम्मरण परे तो सव्वधा ण सरिसत्तं। अकतागमकतणासो कम्माभावोऽधवा पत्तो / / 1783 / / कम्माभावे विकतो भवंतरं सरिसता व तदभावे / णिक्कारगतो य भवो जति तोरणासो वि तध चेव / / 1784 / / कम्माभावे वि मती को दोसो होज्ज जति सभावोऽयं / जध कारणाणुरूवं घडातिकज्ज सभावेणं / / 1785 / / होज्ज सभावो वत्थं णिक्कारणता व वत्थुधम्मो वा / जति वत्थु णत्थि तोऽणुवलद्धीतो खपुप्फ व / / 1786 / / अच्चतमणुवलद्धो वि अध तो अत्थि णत्थि किं कम्म / हेतू व तदत्थित्ते जो गणु कम्मस्स वि स एव / / 1787 / / कम्मस्स वाभिहाणं हेतु सभावो त्ति होतु को दोसो।। णिच्चं व सो सभावो सरिसो एत्थं च को हेतू / / 1788 / / सो मुत्तोऽमुत्तो वा जति मुत्तो तो ण सव्वधा सरिसो। परिणामतो पयं पि व ण देहहेतू जति अमुत्तो / / 1786 / / उवकरणाभावातो ण य भवति सुधम्म ! सो अमुत्तो त्ति / कज्जस्स मुत्तिमत्ता सुहसंवितातितो चेव / / 1760 / / अधवाऽकारणतो च्चिय सभावतो तो वि सरिसता कत्तो। किमकारणतो ण भवे विसरिसता किं व विच्छित्ती / / 1761 // अध वि सभावो धम्मो वत्थुस्स ण सो वि सरिसो णिच्चं / उप्पात्त-ट्ठिति-भंगा चित्ता जं वत्थुपज्जाया / / 1762 // कम्मस्स वि परिणामो सुधम्म ! धम्मो स पोग्गलमयस्स / हेतू चित्तो जगतो होति सभावो त्ति को दोसो // 1763 / / 4. अमुत्तो 1. -णासा मु०। 2, य कतो मु० को। 3. होज्ज सभावो मु• को। वि को० मु०। 5. तो व ता०। 6. अहव मु० / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org