________________ 222 मणधरवाद *प्राभट्ठो य जिगोणं जाइ-जरा-मरणविप्पमुक्केणं / गामेण य गोत्तेण य सव्वण्णु सव्वदरिसी रणं / / 1648 / / *तज्जीवतस्सरीरं ति संसपो ण वि य पुच्छसे किंचि / वेतपताण य अत्थं ण याणसे तेसिमो अत्थो // 1646 / वसुधातिभूतसमदयसंभूता चेतण त्ति ते संका / पत्तेयमदिट्ठा वि हु मज्जंगमदो व्व समुदाये // 1650 / / जध मज्जंगेसु मदो वीसुमदिट्ठो वि समुदये होतु। कालंतरे विणस्सति तय भूतगणम्मि चेतण्णं // 1651 / / पत्तेयमभावातो ण रेणुतेल्लं व समदये चेता। मज्जंगेसुतु मतो वीसुपि रण सव्वसो पत्थि / / 1652 / / भाम-धणि-वितण्हतादी पत्तेयं पि हु जधा मतंगेसु / तध जति भूतेसु भवे चेता तो समुदए होज्जा / / 1653 / / जति वा सव्वाभावो वीसूतो कि तदंगणियमोऽयं / तस्समुदयरिणयमो वा अण्णेसु वि तो भवेज्जाहि / / 1654 / / भूताण पत्तेयं पि चेतरणा समुदये दरिसणातो। जध मज्जंगेसु मदो मति त्ति हेतू ण सिद्धोऽयं / / 1655 / / गणु पच्चक्ख विरोधो गोतम ! तं गाणुमारणभावातो। तुह पच्चक्खविरोधो पत्तेयं भूतचेत त्ति / / 1656 // भूतिदियोवलद्धाणुसरतो तेहिं भिण्णरूवस्स। चेता पंचगवक्खोवलद्धपुरिसस्स वा सरतो / / 1657 / / तदुवरमे वि सरणतो तव्वावारेवि गोवलंभातो। इदियभिण्णस्स मती पंचगवक्खाणुभविणो व्व / / 1658!! उपलब्भण्णण विगारगहणतो तदधिनो धवं अत्थि। पुवावरवादाय मागहरा विगारादिपुरिसो व्व / / 1659 / / सव्विदियोवलद्धाणुस रणतो तदधियोणुमन्तव्यो। जध पंचभिण्णविण्णाणपुरिसविणाणसंपण्णो // 1660 / 1. माणसे ण ता। 2. याणसी मु. को०। 3. ताता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org