________________ 223 गणधरवाद की गाथाएँ विण्णाणंतरपव्वं बालण्णाणमिह णाणभावातो। जध बालणाणपुव्वं जुवणापं तं च देहधियं / / 1661 / / पढमोत्थणाभिलासो अण्णाहाराभिलासपुव्वोऽयं / जध संपताभिलासोऽणुभूतितो सो य देहधियो // 1662 / / बालशरीरं देहतरपब्बं इ दियातिमत्तातो। जुवदेहो बालातिव स जस्स देहो स देहि त्ति / / 1663 / / अण्णसुहदुक्खपुव्वं सुहाति बालस्स संपतसुहं व / अणुभूतिमयत्तरगतो अणुभूतिमयो य जीवो त्ति / / 1664 / 3 संतारणोणातीमो परोप्परं हेतुहेतुभावातो / देहस्स य कम्मस्स य गोतम ! बीयंकुराणं व // 1665 / / तो कम्मसरीराणं कत्तारं करणकज्जभावातो। पडिवज्ज तदब्भधियं दंडघडाणं कुलालं व // 1666 / / अत्थि सरीरविधाता पतिणियताकारतो घडस्सेव / अक्खाणं च करणतो दण्डातीणं कुलालो व्व / / 1667 / / अथिदियविसयारणं आदारणादेयभावतोऽवस्सं / कम्मार इवादाता लोए संडासलोहाणं // 1668 / / भोत्ता देहातीणं भोज्जत्तणतो गरो व्व भत्तस्स / संघातातित्तणतो अत्थी य अत्थी 'घरस्सेव // 1666 / / जो कत्ताति स जीवो सज्झविरुद्धो त्ति ते भती होज्जा / मत्तातिपसंगातो तं गो संसारिणोऽदोसो // 1670 // जातिस्सरो रप विगतो सरणातो बालजातिसरणो व ! जध वा सदेसवत्तं10 रणरो सरंतो विदेसम्मि // 167111 i. पढमो थणा० को० मु०। 2. जह बालाहिलासपुव्वो जुवाहिलासो स देहहिमो को / 3. यह गाथा क्रमांक 1639 पर मा चुकी है। 4. यह माथा क्रमांक 1667 पर भा गई है। वहां 'देहस्सत्थि विधाता' ऐसा पाठान्तर है। 5. यह गाथा क्रमांक 1568 पर पहले आ गई है। 6. यह गाथा पुनः आई है, देखें क्रमांक 1569 / 7. घडस्सेव-ता० / 8. यह गाथा कमांक 1570 पर पहले पा चुकी है। 9. -णो दोसो मु० ता० / 10. सदेहबत्तं ता० / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org