________________ गणघरवाद की गाथाएँ 221 अधवा गंतोऽयं संसारी सव्वहा अमुत्तो त्ति / जमणातिकम्मसंतत्तिपरिणामावण्णरूवो सो // 1638 / / +संताणोऽणातीग्रो परोप्परं हेतुहेउभावातो। देहस्स य कम्मस्स य गोतम ! बीयंकुराणं व / / 1636 / / कम्मे चासति गोतम ! जमग्गिहोत्तादि सग्गकामस्स / वेतविहितं विहण्णति दाणातिफलं च लोयम्मि // 1640 / / कम्ममणिच्छंतो वा सूद्धं चिय जीवमीसराइ वा / मण्णसि देहातीणं जं कत्तार ण सो जुत्ती / / 1641 // उवकरणाभावातो रिणच्चेट्ठामुत्ततादितो वा वि। ईसरदेहारम्भे वि तुल्लता वाऽणवत्था वा / / 1642 / / अधव सभावं मण्णसि विण्णाणघणादिवेदवक्कातो / तध बहुदोसं गोतम ! तारणं च पत्ताणमयमत्थो // 1643 / / *छिण्णम्मि संसयम्मी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केण / सो समणो पव्वाइतो पंचहिं सह खंडियसतेहिं // 1644 / / *ते पव्वइते सोतुततियो आगच्छति जिगासयासे। वच्चामि रणं वंदामी वंदित्ता पज्जुवासामि / / 1645 / / सीसत्तणोवगता संपदमिदग्गिभूतिणो जस्स। तिभुवणकतप्पणामो स महाभागोऽभिगमरिणज्जो // 1646 / / तदभिगमणवंदणोवासणाइणा होज्ज पूतपावोऽहं / वोच्छिण्णसंसपो वा वोत्तु पत्तो जिरणसगासं1० // 1647 / / 1. सव्वतो ता० / 2. जीवस्स य तो। 3. जीवमीसरासि वा (?) ता० / 4. -वेयवुत्तानो मु० को०। 5. तो को० 1 तह मु०। 6. संसयम्मि वि ता० / संसयम्मि सु०। 7. पंचहिं अखं-ता। 8. णं (नहीं है) मु.। 1. तदधिगमवंदणणमंसपादिणा होज्ज ता० / 10. सगासे मु० को० / +यह माया प्रामे भी पाती है-गद्यांक 1665. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org